देखो कुछ कसर ना रह जाये श्रृंगार में
बड़ी मुद्दत के बाद तैयार होने लगा हूँ मैं
सारी उम्र लगा रहा झूठे सफर तय करने में
आज आखिरी मंजिल पर निकला हूँ मैं
मिलूंगा मेरे साँई से गले लग कर ऐसा मजा है
तुम भी नज़र उतारो ना कहो जनाजा कैसा सजा हैं
ताउम्र सजता रहा मैं
बनावटी श्रृंगार से
सादगी का कफन पसंद आया
जब मिलने निकला दिलदार से
ना ढूंढो मुझे गलियों और चौबारों में
मेरा अक़्स जा मिला साँई दरबार से
धन-दौलत सब खेल-खिलौने
जो लगते रहें सदा सलौने
राख के ढेर सी मंजिल हैं तेरी
मत कर खुद से हेराफेरी
जग सारा हैं झूठा
सच्ची साँई सरकार
मिलन होगा उसी से
जो बरसायें सदा प्यार