शिर्डी के साँई बाबा ग्रुप (रजि.)

Tuesday, 12 September 2017

आओं साँईं

कतरा कतरा मैं कट मरूं
जो नाम तेरा जिव्हा ना धरूँ
कुत्ते की मैं मौत मरूं जो
तेरा नाम ले कर काम कोई गलत करूँ

कष्टों की काली बदरिया जब छाई
मुझे साँई जी तुम्हारी याद सताई
कैसे कहूँ हूँ पूरा तुम बिन
मैं तो हूँ ज्यूँ मीन जल बिन

कहते जग वाले मुझे बांवरा
मैं गोपी तेरी तू मेरा साँवरा
सुन कर तेरी बंसी की तान
यह शरीर फिर पावे जान

मैं मैं कर बकरी भया
चढ़ कसाई सूली गया
तेरा तेरा मैंने जब कहा
मैं इस जमाने का ना रहा

ऐसी रंग दे मेरी साँई चुनर
बस तेरे नाम का रहे हुनर
राह निहारूं तेरी बन कर राधा
तेरे नाम बिना मेरा नाम रहे आधा

जो भी घटता जीवन में
सब हैं कर्मों का खेल
मात पिता मेरे तेरे ज़ुदा
फिर यह हैं कैसा मेल
कष्टों की बदरी छाई
कुकर्मों की तब याद आई
जब पहुँचा दरबार मैं साँई
तूने ही मुझे मुक्ति दिलवाई
सब्र किया और रखी सबूरी
तू ही हैं पृथ्वी की दोनो धूरी
सूर्य प्रकाश हैं तुमसे पाता
हमें आराम तेरी चौखट पर आता