शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

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Sunday 31 May 2015

आज का चिन्तन

ॐ सांई राम


।। जय साँई राम ।।

इस तपते भूखंड पर
उड़ते गरम रेत के बीच
जब मैं झुकूं नल पर
तब ओ प्यास
मुझे मत करना कमजोर
पियूं तो एक चुल्लू कम
कि याद रहे दूसरों की प्यास भी
खाऊँ तो एक कौर कम
कि याद रहे दूसरों की भूख भी
बाबा से हर दम यह दुआ मांगता रहता हूँ कि जियूं इस तरह अपने इस जन्म को।

एक ओर दूसरों की प्यास का खयाल रख एक चुल्लू पानी कम पीने,  दूसरों की भूख का खयाल रख एक कौर कम खाने की चेतना से भरे चरित्र की तलाश हमारे बाबा साँई इस दुनिया में कर रहे है। लेकिन दूसरी ओर ठीक तभी यहीं इसी दुनिया में हत्यारे, आततायी व दंगाई माँ से पुत्रों को, भाईयों से बहन को, पत्नियों से पति को, कण्ठों से गीत को, जल से मिठास को और पेड़ों से हरियाली को छीन लेने का षड़यंत्र कर पूरी धरती को अशांत करने में लगे हुए हैं। जो इस सदी की भयावह घटना के रूप में सामने आता है।

बाबा साँई को तलाश है एक ऐसे इन्सान की और एक ऐसे भक्त की जो समझ सके मेरे बाबा साँई की पीड़ा को। आओ समय निकाले अपनी भागम भाग के जीवन से ओर करे धन्यवाद अपने साँई का हर उस अन्न के कौर का और हर एक चुल्लू पानी का जो हमे जीवन देता है। बाबा साँई हमसे इस भाव की ही तो अपेक्षा रखते है। आइये बाबा की इन अपेक्षाओं पर खरा उतरें।

Saturday 30 May 2015

माँ........!!

राम से बड़ा राम का नाम,
राम से बड़ा माँ का नाम,
जिसके वचन के पालन हेतू
चौदह बरस बनवासी हुए राम
माँ के चरणों में सेवा पा कर
लंकापति जीत लिए श्री राम

राजाधिराज, महिमा के साथ आ रहें है.....

ॐ सांई राम


राजाधिराज, महिमा के साथ
आ रहें है,
मेघों पर होके सवार

मुसीबत निंदा - दुःखों का सिलसिला,
खत्म होने का समय आ गया
राजाधिराज, महिमा के साथ
आ रहें है,
मेघों पर होके सवार

मेरे प्रिय का जलाली चेहरा
देखने का अब समय आ गया
राजाधिराज, महिमा के साथ
आ रहें है,
मेघों पर होके सवार

सब दुःखों से परे– अनंत वास में,
ले जाने के लिये वो आ रहा है
राजाधिराज, महिमा के साथ
आ रहें है,
मेघों पर होके सवार

अपने प्रिय के साथ करने सदा का साथ
हम जाने वाले हैं, रहें हर पल तैयार
राजाधिराज, महिमा के साथ
आ रहें है,
मेघों पर होके सवार

Friday 29 May 2015

साई तू है निराला...

ॐ सांई राम


मन मंदिर में बसने वाला,
साई तू है निराला...

जिसके मन में तू जन्म ले
अविनाशी आनंद से भर दे
आदि अनंत और प्रीत रीत की
जल जायेगी ज्वाला
मन मंदिर में बसने वाला,
साई तू है निराला

मुझको को तूने पास बुलाया
स्वर्ग लोक का भवन दिखाया
महा पवित्र स्थान में रहकर
आप ही उसे संभाला
मन मंदिर में बसने वाला,
साई तू है निराला

पाप में दुनिया डूब रही थी
परम पिता से दूर हुई थी
महिमा अपनी आप ही तज कर
रूप मनुष्य ले आया
मन मंदिर में बसने वाला,
साई तू है निराला

प्रेम हमें अनमोल दिखाया
प्रेम की खातिर रक्त बहाया
हर विश्वासी प्रेम से आये
खुशी से अपनी भेंट चढ़ाये
अंधकार सब दूर हुये हैं,
मन में हुआ उजाला...
मन मंदिर में बसने वाला,
साई तू है निराला

Thursday 28 May 2015

अरदास एक दास की

जब जब मैंने तुम्हें पुकारा
तुम साँईं दौड़े दौड़े आये
आज जरूरत फिर आन पड़ी है
साँईं जी होना आप सहाये

नईया मेरी बीच भंवर में
कही रह ना जाए अकेली
अपनी कृपा बालक पर रखना
ज्यूँ माँ बन जाती है सहेली

श्री साई सच्चरित्र अध्याय 33

ॐ सांई राम


आप सभी को शिर्डी के साईं बाबा ग्रुप की और से साईं-वार की हार्दिक शुभ कामनाएं
हम प्रत्येक साईं-वार के दिन आप के समक्ष बाबा जी की जीवनी पर आधारित श्री साईं सच्चित्र का एक अध्याय प्रस्तुत करने के लिए श्री साईं जी से अनुमति चाहते है
हमें आशा है की हमारा यह कदम घर घर तक श्री साईं सच्चित्र का सन्देश पंहुचा कर हमें सुख और शान्ति का अनुभव करवाएगा
किसी भी प्रकार की त्रुटी के लिए हम सर्वप्रथम श्री साईं चरणों में क्षमा याचना करते है...


श्री साई सच्चरित्र अध्याय 33

उदी की महिमा, बिच्छू का डंक, प्लेग की गाँठ, जामनेर का चमत्कार, नारायण राव, बाला बुवा सुतार, अप्पा साहेब कुलकर्णी, हरीभाऊ कर्णिक ।
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Wednesday 27 May 2015

सारी सृष्टि के मालिक तुम्हीं हो

ॐ सांई राम


सारी सृष्टि के मालिक तुम्हीं हो
सारी सृष्टि के रक्षक तुम्हीं 
हो
करते हैं तुझको सादर प्रणाम
गाते हैं तेरे ही गुण
गान॥

सारी सृष्टि को तेरा सहारा
सारे संकट से हमको 
बचाना

तेरे हाथों में जीवन हमारा है
अपनी राहों पर हमको 
चलाना॥

हम हैं तेरे हाथों की रचना

हम पर रहे तेरी 
करुणा

तन, मन, धन हमारा तेरा है
इन्हें किसी को छूने न 
देना॥

अब दूर नहीं है किनारा

धीरज को हमारे 
बढ़ाना

जीवन की हमारी इस नैया को
भवसागर में न खोने 
देना॥

Tuesday 26 May 2015

रिश्ता साँईं संग

लिख लिख कर बही खाते
हम साँईं नाम लिखने लगे
दुनिया में कभी अकेले थे
अब साँईं संगत में दिखने लगे

जो रिश्ता हो गर जानना तो
केवल बुरे वक्त में आजमाये
दिखावटी पास ना आयेगा
साँईं दास सदा होंगे सहाये

तेरी आराधना करूँ

ॐ सांई राम


तेरी आराधना करूँ
तेरी आराधना करूँ
तेरी आराधना करूँ
पाप क्षमा कर, जीवन दे दे
दया की याचना करूँ

तू ही महान, सर्व शक्तिमान
तू ही हैं मेरे जीवन का संगीत
ह्रदय के तार, छेड़े झनकार
तेरी आराधना है मधुर गीत,
जीवन से मेरे तू महिमा पाये
एक ही कामना करूँ
पाप क्षमा कर, जीवन दे दे
दया की याचना करूँ


सृष्टि के हर एक कण कण में
छाया है तेरी ही महिमा का राज,
पक्षी भी करते हैं तेरी प्रशंसा
हर पल सुनाते हैं आनंद का राग
मेरी भी भक्ति तुझे ग्रहण हो,
ह्रदय से प्रार्थना करूँ,
पाप क्षमा कर, जीवन दे दे
दया की याचना करूँ

पतित जीवन में ज्योति जला दे,
तुझ ही से लगी है आशा मेरी
पापमय तन को दूर हटा दे
पूर्ण हो अभिलाषा मेरी
जीवन के कठिन दुखी क्षणों का,
दृढ़ता से समाना करूँ,
पाप क्षमा कर, जीवन दे दे
दया की याचना करूँ

Monday 25 May 2015

ॐ श्री साँईं राम जी
ॐ श्री साँईं शुभ रात्री जी
बाबा जी की शेज आरती का शिर्डी से सीधा प्रसारण

एक अरदास

आप सभी से हाथ जोड़ करू एक अरदास
फूल तुम्हारी बगिया का तुमसे लगाये आस
काँटो की सेज मिले मुझे मै पापी दास
फूल सदा महका करे साँईं हैं पूर्ण विश्वास

इस आस में करूँ विचार अब बाबा
करनी मेरी आपनी अब मैं रहा पछताये
पाप धुलेंगे मेरे अब पूर्व जन्म के सारे
राह निहारे ये नैना मेरे कि अब साँईं आये

साँईं नाम का सहारा हैं

जपते जपते नाम साँईं का
भव सागर के किनारे मैं आया
मेरी जीवन नैया पार लगाने
खुद दौड़ा दौड़ा साँईं आया

साँईं नाम का सहारा ले कर मैंने
अपनी नैया सागर में आज उतारी है
गोते ना खाये लहरों के थपेड़ों में कहीं
बाबा साँईं आन संभालो अब आपकी बारी है

Shirdi Sai Baba Settled in Shirdi

ॐ सांई राम



Shirdi Sai Baba Settled in Shirdi


In 1858 SaiBaba returned to Shirdi with Chand Patil's wedding procession. After alighting near the Khandoba temple he was greeted with the words "Ya Sai" (welcome saint) by the temple priest Mhalsapati. The name Sai stuck to him and some time later he started being known as SaiBaba. It was around this time that Baba adopted his famous style of dress, consisting of a knee-length one-piece robe (kafni) and a cloth cap. Ramgir Bua, a devotee, testified that SaiBaba was dressed like an athlete and sported 'long hair flowing down to his buttocks' when he arrived in Shirdi, and that he never had his head shaved. It was only after SaiBaba forfeited a wrestling match with one Mohdin Tamboli did he take the kafni and cloth cap, articles of typically Sufi clothing.

This attire contributed to SaiBaba's identification as a Muslim fakir, and was a reason for initial indifference and hostility against him in a predominantly Hindu village. According to B.V. Narasimhaswami, a posthumous follower who was widely praised as Sai Baba's "apostle", recorded that this attitude was prevalent even among some of his devotees in Shirdi even up to 1954.

For four to five years SaiBaba lived under a neem tree, and often wandered for long periods in the jungle in and around Shirdi. His manner was said to be withdrawn and uncommunicative as he undertook long periods of meditation.

He was eventually persuaded to take up residence in an old and dilapidated masjid and lived a solitary life there, surviving by begging for alms and receiving itinerant Hindu or Muslim visitors. In the mosque he maintained a sacred fire which is referred to as a dhuni, from which he had the custom of giving sacred ash ('Udhi') to his guests before they left and which was believed to have healing powers and protection from dangerous situations.

At first he performed the function of a local hakim and treated the sick by application of Udhi. SaiBaba also delivered spiritual teachings to his visitors, recommending the reading of sacred Hindu texts along with the Qur'an, especially insisting on the indispensability of the unbroken remembrance of God's name (dhikr, japa). He often expressed himself in a cryptic manner with the use of parables, symbols and allegories. He participated in religious festivals and was also in the habit of preparing food for his visitors, which he distributed to them as prasad. SaiBaba's entertainment was dancing and singing religious songs (he enjoyed the songs of Kabir most).

His behaviour was sometimes uncouth and violent.

After 1910 SaiBaba's fame began to spread in Mumbai. Numerous people started visiting him, because they regarded him as a saint (or even an avatar) with the power of performing miracles.
Sai Baba took Mahasamadhi on October 15, 1918 at 2.30pm. He died on the lap of one of his devotees with hardly any belongings, and was buried in the "Buty Wada" according to his wish.
Later a mandir was built there known as the "Samadhi Mandir".

Sai Mandir Naasik..

Sunday 24 May 2015

साईं विभूति मंत्र

ॐ सांई राम
 


साईं विभूति मंत्र
परमम्  पवित्रम बाबा  विभूतिम
परमम्  विचित्रं  लीला  विभूतिम
परमार्थ  इश्तार्था  मोक्ष  प्रधानम
बाबा  विभूतिम  इद्धम  अस्रयामी

Meaning:
I take refuge in the supremely sacred Vibhuthi of Lord Baba, the wonderful Vibhuthi, which bestows salvation, the sacred state which I desire to attain.
English version:Sacred Ash, Miraculous, Baba's Creation
Flowing From His Blessed Hand, Holy Creation
Granting Us The Greatest Wealth, God's Divine Protection
Beloved Baba, Grant Us Liberation

Saturday 23 May 2015

ये ही साँई का सार है

ज्यूँ भीगी मिट्टी की सुगंध
कस्तूरी सी महकती है
त्यूँ ही साँई तेरी उदी
चमत्कार नित करती है

सरकार मेरे साँईं की
सबकी पालनहार है
एक है मालिक सभी धर्मों का
ये ही साँई का सार है

नशा चढ़ा तेरा ऐसा सिर चढ़ बोला
तू ही मात दूर्गा तू ही है शिव भोला

मेरी ऐसी करनी की मात मेरी पछताये
तेरी ऐसी मेहर हुई की दुनिया तेरे पीछे आये

शिव है संकटहारी
शिव ही है त्रिपुरारी
तेरी महिमा अति सुंदर
लागे मोहे अति प्यारी

इक तेरा दर ही काफी है

जन्नत की आरजू है किसे
इक तेरा दर ही काफी है
हर पापी को मिलती मुक्ति यहाँ
हर सजा की मिलती माफी हैं

करूँ सजदे तेरी चौखट पर
टेँकू माथा मैं यहाँ बारम्बार
तेरी लीला हैं बड़ी निराली
तेरी महिमा अपरम्पार

कहते हैं दुनिया वाले मुझको तेरा दिवाना
तू ही एक शमां है और मैं तेरा परवाना
मुझको ललक लगी तेरी लौ की ऐसी
चाहूँगा मैं इसमें बार बार जल जाना

पानी से दीये तुमनें जलायें

जग का हैं तू पालनहार
सबका हैं तू तारणहार
तेरी उदी तुझसे निराली
करती नित नये चमत्कार

उदी माथे से जो लगा ले
सारी विपदा से मुक्ति पा ले
एक क्षण भी तू ना लगाएं
कोई भी ध्याये तू भागा आए

कैसे अदा कर पाऊँगा मैं
तेरे एहसानों का फल
तेरी रहमत हर पल बरसे
हर क्षण और हर पल

मात्र एक परिवार नहीं
यह तो पागलखाना है
जिसे देखो वो ही साँई
बस तेरे नाम का दिवाना है

पानी से दीये तुमनें जलायें
तभी से चमत्कारी कहलाये
जो भी प्राणी तेरे दर पर आये
भर भर झोलियाँ वो ले जाये

साँईं नाम का सहारा

तिनका बहे समुद्र में
ना कोई भय सताये
त्यूँ ही साँई चरणों में
यह जीवन बीता जाये

डर तूफानों का उन जहाजों को होता है,
जिन्हें अपना बड़ा होने पर गुमान होता है,
पार पाते हैं तूफानों में भी तिनके क्योंकि
छोटा बन कर जीना उन्होंने साँईं से सीखा है

क्या बिगाड़ेंगी तेज लहरें भी हमारा
जब साँईं जी का हमें मिला है सहारा
कठिन डगर भी आसानी से पार होगी
साँईं जी ने सब को हैं भव से तारा

राधा कृष्ण का प्रेम प्रसंग

🚩 राधे - कृष्ण 🚩

एक दिन रुक्मणी ने भोजन के बाद श्री कृष्ण को दूध पीने को दिया।दूध ज्यदा गरम होने के कारण श्री कृष्ण के हृदय में लगा और उनके श्रीमुख से निकला हे राधे !
सुनते ही रुक्मणी बोली प्रभु ऐसा क्या है राधा जी में जो आपकी हर साँस पर उनका ही नाम होता है।में भी तो आपसे अपार प्रेम करती हूँ फिर भी आप हमे नहीं पुकारते।
श्री कृष्ण ने कहा देवी आप कभी राधा से मिली है और मंद मंद मुस्काने लगे।
अगले दिन रुक्मणी राधाजी से मिलने उनके महल में पहुंची राधाजी के कक्ष के बाहर अत्यंत खूबसूरत स्त्री को देखा और उनके मुख पर तेज होने कारण उसने सोचा कि ये ही राधाजी है और उनके चरण छुने लगी तभी वो बोली आप कौन है तब रुक्मणी ने अपना परिचय दिया और आने का कारण बताया तब वो बोली में तो राधा जी की दासी हूँ।राधाजी तो सात द्वार के बाद आपको मिलेंगी रुक्मणी ने सातो द्वार पार किये और हर द्वार पर एक से एक सुन्दर और तेजवान दासी को देख सोच रही थी क़ि अगर उनकी दासियाँ इतनी रूपवान है तो राधारानी स्वयं कैसी होंगी।सोचते हुए राधाजी के कक्ष में पहुंची।कक्ष में राधा जी को देखा अत्यंत रूपवान तेजस्वी जिस का मुख सूर्य से भी तेज चमक रहा था।रुक्मणी सहसा ही उनके चरणों में गिर पड़ी पर ये क्या राधा जी के पैरो पर तो छाले पड़े हुए है।रुक्मणी ने पूछा देवी आपके पैरो में छाले
कैसे।
तब राधा जी ने कहा देवी कल आपने कृष्णजी को जो दूध दिया वो ज्यदा गरम था जिससे उनके ह्रदय पर छाले पड गए और उनके ह्रदय में तो सदैव मेरा ही वास होता है।

🙏 श्री कृष्ण..
            राधे कृष्ण..
       कृष्ण कृष्ण...हरे हरे 🙏

Know more about Baba....

ॐ सांई राम



Shirdi Sai baba's Background


Historical researches into genealogies in Shirdi give support to the theory that Baba could have been born with the name Haribhau Bhusari. SaiBaba was notorious for giving vague, misleading and contradictory replies to questions concerning his parentage and origins, brusquely stating the information was unimportant.

He had reportedly stated to a close follower, Mhalsapati, that he has been born of Brahmin parents in the village of Pathri and had been entrusted into the care of a fakir in his infancy. On another occasion, Baba reportedly said that the fakir's wife had left him in the care of a Hindu guru, Venkusa of Selu, and that he had stayed with Venkusa for twelve years as his disciple. This dichotomy has given rise to two major theories regarding SaiBaba's background, with the majority of writers supporting the Hindu background over the Islamic, while others combine both the theories (that Sai Baba was first brought up by a fakir and then by a guru).

SaiBaba reportedly arrived at the village of Shirdi in the Ahmednagar district of Maharashtra, India, when he was about sixteen years old.

Although there is no agreement among biographers about the date of this event, it is generally accepted that SaiBaba stayed in Shirdi for three years, disappeared for a year and returned permanently around 1858, which posits a possible birthyear of 1838.] He led an ascetic life, sitting motionless under a neem tree and meditating while sitting in an asana.

The Sai Satcharita recounts the reaction of the villagers: "The people of the village were wonder-struck to see such a young lad practicing hard penance, not minding heat or cold. By day he associated with no one, by night he was afraid of nobody."

His presence attracted the curiosity of the villagers and the religiously-inclined such as Mhalsapati, Appa Jogle and Kashinatha regularly visited him, while others such as the village children considered him mad and threw stones at him. After some time he left the village, and it is unknown where he stayed at that time or what happened to him.

However, there are some indications that he met with many saints and fakirs, and worked as a weaver; he claimed to have fought with the army of Rani Lakshmibai of
Jhansi during the Indian Rebellion of 1857. 

Although SaiBaba's origins are unknown, some indications exist that suggest that he was born not far from Shirdi.

Friday 22 May 2015

About Shirdi Ke Sai Baba

ॐ सांई राम




About Shirdi Ke Sai Baba

Shirdi Sai Baba, also known as Sai Baba of Shirdi, was an Indian guru, yogi and fakir who is regarded by his Hindu and Muslim followers as a saint. Some of his Hindu devotees believe that he was an incarnation of Shiva or Dattatreya, and he was regarded as a sadguru and an incarnation of Kabir.


The name 'Sai Baba' is a combination of Persian and Indian origin; Sāī (Sa'ih) is the Persian term for "holy one" or "saint", usually attributed to Islamic ascetics, whereas Bābā is a word meaning "father" used in Indian languages. The appellative thus refers to SaiBaba as being a "holy father" or "saintly father". His parentage, birth details, and life before the age of sixteen are obscure, which has led to a variety of speculations and theories attempting to explain the SaiBaba's origins. In his life and teachings he tried to reconcile Hinduism and Islam: SaiBaba lived in a mosque, was buried in a Hindu temple, practised Hindu and Muslim rituals, and taught using words and figures that drew from both traditions. One of his well known epigrams says of God: "Allah Malik" ("God is Master").


Sai Baba taught a moral code of love, forgiveness, helping others, charity, contentment, inner peace, devotion to God and guru. His philosophy was Advaita Vedanta and his teachings consisted of elements both of this school as well as of bhakti and Islam.


Shirdi SaiBaba remains a popular saint and is worshipped mainly in Maharashtra, southern Gujarat, Andhra Pradesh and Karnataka. Debate on his Hindu or Muslim origins continues to take place. He is also revered by several notable Hindu and Sufi religious leaders. Some of his disciples received fame as spiritual figures and saints.


Sri SaiBaba left his physical body in October 15, 1918.... but he is believed to be with us even more now than he was earlier...
 

Thursday 21 May 2015

आज दिन खुशियों का आया

आज दिन खुशियों का आया
आया आज मेरे साँईं का वार
रहमते साँईं की बरसती रहे
रहे सदा सुखी ये परिवार

मैं हूँ पापी निपढ़ गंवार
कैसे साँईं तेरी शोभा गाऊँ
तू खींचे डोर मेरे पैरों में बंधी
मैं चिड़िया सा उड़ता आऊं

जब जब देखूँ बाबा को
धारण मोर मुकुट सिर पर
फकीर शहंशाह बनता देखूँ
कर दे नज़र अब इस दास पर

आठों दिशाओं में आठों याम
तेरे नाम का चर्चा साँईं हुआ आम
दूर ना जा इक पल भी मुझसे
ओ निर्मोही आजा मेरी बहियाँ थाम

मात पिता की सेवा के
जब जब बीज तू बोये
खुशियाँ झोली में आ बैठे
दुख देख के तुझको रोये

आप सभी को श्री साँईं वार की हार्दिक शुभकामनाएँ ।

कर्म बुरे जब हम करे
धर्मराज लिखते जाये
साँईं नाम का हो जब सिमरन
स्वयं ही मिटते जाये

उजले कर्म कमाये जा
आगे काम तेरे ये आये
पाप कमाये जो पूर्व जन्म
खुद साँईं संवारते जाये

खड़ा रहे पानी अगर
वह भी सड़ता जाये
चलता पानी झरने की
शोभा अति बढ़ाये
यू ही साँई नाम चलता रहे
तेरा भाग्य चमकता जाये

श्री साई सच्चरित्र अध्याय 32

ॐ सांई राम


आप सभी को शिर्डी के साईं बाबा ग्रुप की और से साईं-वार की हार्दिक शुभ कामनाएं, हम प्रत्येक साईं-वार के दिन आप के समक्ष बाबा जी की जीवनी पर आधारित श्री साईं सच्चित्र का एक अध्याय प्रस्तुत करने के लिए श्री साईं जी से अनुमति चाहते है, हमें आशा है की हमारा यह कदम घर घर तक श्री साईं सच्चित्र का सन्देश पंहुचा कर हमें सुख और शान्ति का अनुभव करवाएगा, किसी भी प्रकार की त्रुटी के लिए हम सर्वप्रथम श्री साईं चरणों में क्षमा याचना करते है...



श्री साई सच्चरित्र अध्याय 32

गुरु और ईश्वर की खोज, उपवास अमान्य
........................................
इस अध्याय में हेमाडपंत ने दो विषयों का वर्णन किया है ।
1. किस प्रकार अपने गुरु से बाबा की भेंट हुई और उनके द्घारा ईश्वरदर्शन की प्राप्ति कैसे हुई ।
2. श्रीमती गोखले को जो तीन दिन से उपवास कर रही थी, उसे पूरनपोली के भोजन कराये ।


Wednesday 20 May 2015

गुरु देवा महेश्वर

ॐ सांई राम




भजो  भाई  बहन  गुरु  नाम 
भजो  साईं  चरण  सुख  धाम 
मुक्ति  प्रदायक  मोह  विदूरका 
भक्ता  परायण  साईं  नाम 
भजो रे  सदगुरु  साईं  चरणं 
पावन  चरणं, पद्मदल  चरणं 
मुक्ति  दायक  मोहना  चरणं 
पाप  विनाशका  साईं चरणं 

भजो रे  मानस  गुरु  चरणं 
सदगुरु  चरणं  भाव  भय  हरनाम 
सत्चिदानान्दा  परमानंदा 
सदगुरु  साईं  गुरु  चरणं 
साईं  गुरु  ब्रह्मा,  साईं  गुरु  विष्णु 
साईं  गुरु  देवो  महेश्वर 
साईं  गुरु  साक्षात  परब्रह्म 
सदगुरु  साईं  नाम  जपो 

ब्रह्मानंदा  गुरु  प्रेमानान्दा  गुरु 
साईं  गुरु  देवा  शरणम 
भजो  शंकर  हरी  हरा  शरणम 
विश्वनाथ  देवा  गौरी  मनोहर 
साईं  नाठा  बाबा  परमेश्वर 
भजो  शिव  शम्भो  शिव  शरणम 

गुरु  साईं  गुरु  बाबा 
चरण  नमोस्तुते  गुरु  बाबा 
साईं  बाबा  भोले  बाबा 
गुरु  वरा  गुरु  वरा  गुरु  बाबा 
विद्या  दायक  गुरु  बाबा 
शांत  स्वरूप  गुरु  बाबा 
गुरुवरा  गुरुवरा  गुरु बाबा 

गुरु  भगवान  श्री  साईं  राम
शिर्डी  निरंजन साईं  भगवान 
परम  दयाकर  साईं  भगवान 
मंगल  करो  प्रभु  मंगल धाम 
मोक्ष  विधायक  साईं  भगवान 

गुरु  ब्रह्मा  गुरु  विष्णु 
गुरु  देवा  महेश्वर
जय  देवा गुरु  देवा 
जय  शिर्डी साईश्वर
जय  जय  जय  करुनाकर 
जय जय जय अखिलेश्वर 
जय  जय  जय  शिर्डीश्वर 
जय  जय  जय  पर्थीश्वर 

गुरु  देवा  गुरु  गोविंदा 
मंगल  गिरिधर,
शिर्डी  पुरीश्वारा 
जय  साईं  शिव 
मंगल  रूपा 
श्री  साईं  देवा



गुरु  देवा  सदगुरु  देवा 
दया  करो  भगवान 
शांति  दो, शांति  दो,
शांति दो, मुझे दया  धना 
आनंदा  चन्द्र  सत्चिदानान्दा
आनंदा आनंदा साईं 
हे  गुरु  देवा  आनंदा
आनंदा साईं 
हे  भुवनेशा 
दया  करो  भगवान 
शांति  दो, शांति  दो,
शांति दो, मुझे  दया  धना 

Tuesday 19 May 2015

मनुष्य को कभी भी अपना अच्छा स्वभाव नहीं भूलना चाहिए।

ॐ सांई राम



एक बार एक भला आदमी नदी किनारे बैठा था। तभी उसने देखा एक बिच्छू पानी में गिर गया है। भले आदमी ने जल्दी से बिच्छू को हाथ में उठा लिया। बिच्छू ने उस भले आदमी को डंक मार दिया। बेचारे भले आदमी का हाथ काँपा और बिच्छू पानी में गिर गया।

भले आदमी ने बिच्छू को डूबने से बचाने के लिए दुबारा उठा लिया। बिच्छू ने दुबारा उस भले आदमी
को डंक मार दिया। भले आदमी का हाथ दुबारा काँपा और बिच्छू पानी में गिर गया।

भले आदमी ने बिच्छू को डूबने से बचाने के लिए एक बार फिर उठा लिया। वहाँ एक लड़का उस आदमी का बार-बार बिच्छू को पानी से निकालना और बार-बार बिच्छू का डंक मारना देख रहा था। उसने आदमी से कहा, "आपको यह बिच्छू बार-बार डंक मार रहा है फिर भी आप उसे डूबने से क्यों बचाना चाहते हैं?"
भले आदमी ने कहा, "बात यह है बेटा कि बिच्छू का स्वभाव है डंक मारना और मेरा स्वभाव है बचाना। जब बिच्छू एक कीड़ा होते हुए भी अपना स्वभाव नहीं छोड़ता तो मैं मनुष्य होकर अपना स्वभाव क्यों छोड़ूँ?"

मनुष्य को कभी भी अपना अच्छा स्वभाव नहीं भूलना चाहिए।

Monday 18 May 2015

आज का साँई सन्देश

ॐ साँई राम


सबका मालिक एक
दुनिया में आज कितने धर्म है किस किस की इबादत लोग करते हे किसी मुस्लिम से पुचो की धरती किसने बनायीं वो ये नही कहेगा की मुहम्मद साहब ने बनायीं वो ये कहेगा की "अल्लाह" ने बनायीं. किसी ईसाई से पुचो किसने बनायीं वो इसा मसीह जी का नाम नही लेगा वो कहेगा गौड़ ने बनायीं. किसी यहूदी से पुचो किसने बनायीं वो मूसा जी का नाम नही लेगा कहेगा गौड़ ने बनायीं.किसी हिन्दू से पुचो वो ये नही कहेगा की राम जी ने बनायीं वो कहेगा की इश्वर ने बनायीं.सबने अपनी अपनी बात कह दी पर ये ""अल्लाह, गौड़, इश्वर,"" कौन हे सब जानते हे की मालिक एक ही हे मुस्लिम ने अरबी नाम बताया ईसाई ने इंग्लिश हिन्दू ने हिंदी में बताया दुनिया को सिर्फ एक सर्व शक्तिमान ने बनाया हे ...कितनी नेमते हे जो उस ऊपर वाले ने सबको दी धर्म क्या हे सिर्फ सच को मान लेना और सच्चे रास्ते पर चलना ही धर्म हे ऐसा कोई धर्म नही जो दुसरे धर्म के बेगुनाह लोगो को मारने की इजाज़त देता हो जो किसी पर जुल्म करने का हक़ देता हो धर्म तो सिर्फ सेवा और प्रेम सिखाता हे और जो सत्य सेवा और प्रेम के विरुद्ध जायेगा वो अपने धर्म का दुश्मन हे सब एक ही इश्वर की ओलाद हे फिर ये हिंसा ये मार काट ये भेद भाव क्यों हे कुछ भटके हुए लोग जो अधर्मी हे अपने लालच के लिए हिंसा का रास्ता लोगो को बता रहे हे कोई किसी की तेल सम्पद्दा पर कब्ज़ा करने के लिए किसी देश पर बहाना बना कर हमला कर रहा हे कोई किसी की ज़मीं पर कब्ज़ा करने के लिए आतंकियों को भेज रहा हे कोई सत्ता पर कब्ज़ा करने के लिए किसी की भावनाओ को किसी विशेष समुदाय के खिलाफ भड़का रहा हे और हम सब उनके हाथो की कटपुतली बने हुए हे हमारी बुद्धि ये काम नही कर रही की हम इश्वर की संतानों को मार रहे हे फिर इश्वर केसे हमें जन्नत देगा मारना तो उसे चाहिए जो हम सबको इस्तेमाल कर रहा हे .....जो लोग मंदिर मस्जिद या गिरजा घर तोड़ते हे वो इश्वर के घर को तोड़ते हे वो सब पापी लोग हे उन्हें इश्वर का उपासक होने का ढोंग नही करना चाहिए क्योकि अगर सच्चा भक्त होगा तो इश्वर के घर को न तोड़ेगा वो तो अधर्मी और नास्तिक हे सिर्फ सत्ता का लोभी हे.. जो धार्मिक फसाद करने चाहे उसका सामाजिक बहिष्कार करो क्योकि हमारा समाज अब तरक्की चाहता हे इसलिए ओ नोजवानो इश्वर को समझो और हिंदुस्तान के विकास के लिए आगे बडो हिन्दू या मुस्लिम बाद में बनो पह् ले पहले इंसान की ओलाद हो इंसान बनो।
सबका मालिक एक

Sunday 17 May 2015

सबका मालिक एक

मस्जिद की सुन लो अजान
या सुनो आरती की तुम तान
गुरूद्वारे की गुरबाणी लो जान
गिरजाघरों से बाईबल का ज्ञान
सभी ग्रंथ पवित्र सुर एक ही बांछे
सबका मालिक एक इतना ले तू जान

कुछ अलफाज बाबा जी की कृपा से

नहीं दूर रह पाऊँगा मैं
इक पल भी इस परिवार से
कुत्ता जैसे दूर ना रहें
मालिक के दरबार से

मालिक की कृपा हुई
दिया ऐसा प्यारा घरबार
साँईं का ही गुणगान हो
और सजा रहे साँईं दरबार

ग्रुप नहीं मेरा मंदिर हैं
बसी साँसे मेरी हर जन में
ताना-कशी हैं आदत जिनकी
लाना है उन्हें साँईं भजन में

कैसे काटे कोई अपनी उंगली
खुद अपने ही हाथों से
मैं अकेला हूँ ही नहीं
ये दरबार सजा साँईं हाथों से

कभी बायजा माँ का सहारा मिला
कहीं कोई तात्या भाई बन आया
हाथ दोनों जोड़ स्वागत करो
देखो अभी कहीं मेरा साँई आया

लिखते हुए मंद पड़ गई है नज़र
प्यार दिल मे ही रह तू आँखों से ना निकल
बहुत प्यार दिया है मेरे साँईं ने
यू धीरे धीरे मोम सा ना पिघल

जो कुछ सीखा आपसे
करू अर्पित सब माही
दयालु है मेरे सदगुरू
साँईं सा दूजा कोई नाहीं

उसूल मेरे नहीं आपकी भलाई है
आपकी जिम्मेदारी मेरे कांधे आई है
टूट कर बिखर गया होता कभी का
समेटने वाला तो मेरा बाबा साँई हैं

शिर्डी के साँई बाबा ग्रुप ( रजि. ) की प्रार्थना

कैसे कैसे लोग हैं
अजब निराले ढंग
मस्ती में डूबे रहते
रहे रंगे साँईं के रंग

रंग निराला ढंग निराला
रहन सहन हैं सबसे आला
उसका दुनिया क्या कर लेगी
जिसका रखवाला हैं शिर्डी वाला

कुछ लोग ऐसे हैं होते
नाम कमाने में हैं खोते
जपे नाम दिन रैन साँईं का
करे काम हरपल कसाई का

साँईं ना मांगे तुझसे भक्ति कोई
तेरे बुरे कर्मों से साँईं आत्मा रोई
करना चाहे गर साँईं की सेवा
सही मार्ग पहले कर मानव सेवा

बदलना चाहे गर अपने हालात
ना मार किसी असहाय को लात
तेरी हाजिरी खुद साँईं लगाएंगे
दुनिया कहेगी क्या बात क्या बात

हुनर संवारना हो अगर
अपने मन को पहले टटोल
किसी का लिखा क्यो तू छीने
साँईं की श्रध्दा दिल में घोल

रिश्ते जो बनाये साँईं ने
क्यो तू तोड़े ठोकरें मारे
नाम तेरा यही रह जायेगा
रिश्ते रहेंगे संग तुम्हारे

साँईं का परिवार हैं ये
नहीं कोई तेरा व्यापार
नफरत के यहाँ बीज ना बोना
संग रहे सब यहीं बांटे प्यार

आओ साईं - आज का साँई सन्देश


ॐ सांई राम


  

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बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.