नंगे नंगे पाँव था जब अकबर आया माँ जग जननी को था अजमाया मुझमें नहीं कुछ ऐसी धारणा खास रहना चाहूँ बन दासों का मैं दास हरपल मांगू खैर मैं सभी की निकले मुख से हर दम ये अरदास