शिर्डी के साँई बाबा ग्रुप (रजि.)
शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....
"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम
मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे
कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे
मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे
दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे
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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।
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Saturday, 7 June 2014
Friday, 6 June 2014
ॐ श्री साँईं शुभ रात्री जी
ॐ श्री साँईं राम जी
ॐ श्री साँईं शुभ रात्री जी
Live Shej aarti from Shirdi
आओ जी आओ जी
उड़न खटोले में स्वार
स्वपन परी
आओ जी आओ जी
बाबा जी को मीठी नींद
सुलाओ जी आओ जी
साईं मुख से बोल दो, अहम को अपने छोड़ दो
ॐ श्री साँईं राम जी
'ये पर्वतों के दायरे, ये शाम का धुआं'
हे साईं तेरे प्यार का, ये दीप है जला
तेरे ही दीदार का, है ये तो सिलसिला
हे साईं ..........
साईं मुख से बोल दो, अहम को अपने छोड़ दो,
खुद को उससे जोड़ दो, भरम वो सारे तोड़ दो
नसीब उसका खुल गया, जो साईं से मिला
हे साईं ..........
श्रद्धा हो सबूरी हो, लगन भी जिसमे पूरी हो,
मांग कर तो देख लो, आशा सबकी पूरी हो
जिसने माँगा जो भी कुछ, वो साईं से मिला
हे साईं ...........
साईं तुझको है नमन, तुझको कोटि है नमन
शिर्डी बन गया ये मन, धन्य हो गए नयन
हुआ दीदार साईं का,चमन है ये खिला
हे साईं .............
यह भजन बहन रविन्द्र जी की ओर से आप के समक्ष प्रस्तुत किया जा रहा हैं, बाबा जी से प्रार्थना है की उन पर और आप सभी पर अपना आशिर्वाद बनायें रखे
Thursday, 5 June 2014
श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 30
आप सभी को शिर्डी के साँईं बाबा ग्रुप की ओर से साईं-वार की हार्दिक शुभ कामनाएं
हम प्रत्येक साईं-वार के दिन आप के समक्ष बाबा जी की जीवनी पर आधारित श्री साईं सच्चित्र का एक अध्याय प्रस्तुत करने के लिए श्री साईं जी से अनुमति चाहते है
हमें आशा है की हमारा यह कदम घर घर तक श्री साईं सच्चित्र का सन्देश पंहुचा कर हमें सुख और शान्ति का अनुभव करवाएगा
किसी भी प्रकार की त्रुटी के लिए हम सर्वप्रथम श्री साईं चरणों में क्षमा याचना करते है...
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श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 30
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शिरडी को खींचे गये भक्त
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1. वणी के काका वैघ
2. खुशालचंद
3. बम्बई के रामलाल पंजाबी ।
इस अध्याय में बतलाया गया है कि तीन अन्य भक्त किस प्रकार शिरडी की ओर खींचे गये ।
Wednesday, 4 June 2014
रामायण के प्रमुख पात्र - श्रीरामभक्त विभीषण
ॐ श्री साँईं राम जी
रावणने जब सीताजीका हरण किया, तब विभीषणने परायी स्त्रीके हरणको महापाप बताते हुए सीताजीको श्रीरामको लौटा देनेकी उसे सलाह दी| किन्तु रावणने उसपर कोई ध्यान न दिया| श्रीहनुमान् जी सीताकी खोज करते हुए लंकामें आये| उन्होंने श्रीरामनामसे अंकित विभीषणका घर देखा| घरके चारों ओर तुलसीके वृक्ष लगे हुए थे| सूर्योदयके पूर्वका समय था, उसी समय श्रीराम-नामका स्मरण करते हुए विभीषणजी की निद्रा भंग हुई| राक्षसोंके नगरमें श्रीरामभक्तको देखकर हनुमान् जीको आश्चर्य हुआ| दो रामभक्तोंका परस्पर मिलन हुआ| श्रीहनुमान् जीका दर्शन करके विभीषण भाव विभोर हो गये| उन्हें ऐसा प्रतीत हुआ कि श्रीरामदूतके रूप में श्रीरामने ही उनको दर्शन देकर कृतार्थ किया है| श्रीहनुमान् जी ने उनसे पता पूछकर अशोकवाटिकामें माता सीताका दर्शन किया| अशोकवाटिका-विध्वंस और अक्षयकुमारके वधके अपराधमें रावण हनुमान् जी को प्राणदण्ड देना चाहता था| उस समय विभीषणने ही उसे दूतको अवध्य बताकर हनुमान् जी को कोई और दण्ड देनेकी सलाह दी| रावणने हनुमान् जी की पूँछमें आग लगानेकी आज्ञा दी और विभीषणके मन्दिरको छोड़कर सम्पूर्ण लंका जलकर राख हो गयी|
भगवान् श्रीरामने लंकापर चढ़ायी कर दी| विभीषणने पुन: सीताको वापस करके युद्धकी विभीषणको रोकनेकि रावणसे प्रार्थना की| इसपर रावणने इन्हें लात मारकर निकाल दिया| ये श्रीरामके शरणागत हुए| रावण सपरिवार मारा गया| भगवान् श्रीरामने विभीषणको लंकाका नरेश बनाया और अजर-अमर होने का वरदान दिया| विभीषणजी सप्त चिरंजीवियों एक हैं और अभीतक विद्यमान हैं|
Tuesday, 3 June 2014
रामायण के प्रमुख पात्र - रामभक्त श्रीहनुमान
ॐ श्री साँईं राम जी
भगवान् श्रीराम अपने छोटे भाई लक्ष्मणके साथ अपनी पत्नी सीताजीको खोजते हुए ऋष्यमूकके पास आये| श्रीसुग्रीवके आदेशसे श्रीहनुमान् जी विप्रवेशमें उनका परिचय जाननेके लिये गये| अपने स्वामीको पहचानकर ये भगवान् श्रीरामके चरणोंमें गिर पड़े| श्रीरामने इन्हें उठाकर हृदयसे लगा लिया और श्रीकेशरीकुमार सर्वदाके लिये श्रीरामके दास हो गये| इन्हींकी कृपासे सुग्रीवको श्रीरामका मित्र होनेका सौभाग्य मिला| वाली मारा गया और सुग्रीव किष्किन्धाके राजा बने|
सीताशोध, लंकिनी-वध, अशोकवाटिकामें अक्षयकुमार-संहार, लंकादाह आदि अनेक कथाएँ श्रीहनुमान् जीकी प्रखर प्रतिभा और अनुपम शौर्यकी साक्षी हैं| लंकायुद्धमें इनका अद्भुत पराक्रम तथा इनकी वीरता सर्वोपरि रही| मेघनादके द्वारा लक्ष्मणके मूर्च्छित होनेपर इन्होंने संजीवनी लाकर उन्हें प्राणदान दिया| राक्षस इनकी हुंकारमात्रसे काँप जाते थे| रावणकी मृत्युके बाद जब भगवान् श्रीराम अयोध्या लौटे, तब श्रीहनुमान् जी ने ही श्रीरामके लौटनेका शुभ समाचार श्रीभरतजीको सुनाकर उनके निराश जीवनमें नवीन प्राणोंका सञ्चार किया|
श्रीहनुमान् जी विद्या, बुद्धि, ज्ञान तथा पराक्रमीकी मूर्ति हैं| जबतक पृथ्वीपर श्रीरामकथा रहेगी, तबतक श्रीहनुमान् जीको इस धरा-धामपर रहनेका श्रीरामसे वरदान प्राप्त है| आज भी ये समय-समयपर श्रीरामभक्तोंको दर्शन देकर उन्हें कृतार्थ किया करते हैं|
Monday, 2 June 2014
रामायण के प्रमुख पात्र - भक्तिमति शबरी
ॐ श्री साँईं राम जी
महर्षि मतंगने सामाजिक बहिष्कार स्वीकार किया, किन्तु शरणागता शबरीका त्याग नहीं किया| महर्षिका अन्त निकट था| उनके वियोगकी कल्पनामात्रसे शबरी व्याकुल हो गयी| महर्षिने उसे निकट बुलाकर समझाया - 'बेटी! धैर्यसे कष्ट सहन करती हुई साधनामें लगी रहना| प्रभु राम एक दिन तेरी कुटियामें अवश्य आयेंगे| प्रभुकी दृष्टिमें कोई दीन-हीन और अस्पृश्य नहीं है| वे तो भावके भूखे हैं और अन्तरकी प्रीतिपर रीझते हैं| शबरीका मन अप्रत्याशित आनन्दसे भर गया और महर्षिकी जीवन-लीला सम्पात हो गयी|
शबरी अब वृद्धा हो गयी थी| 'प्रभु आयेंगे' गुरुदेवकी यह वाणी उसके कानोंमें गूँजती रहती थी और इसी विश्वासपर वह कर्मकाण्डी ऋषियोंके अनाचार शान्तिसे सहती हुई अपनी साधनामें लगी रही| वह नित्य भगवान् के दर्शनकी लालसासे अपनी कुटिया को साफ करती, उनके भोगके लिये फल लाकर रखती| आखिर शबरीकी प्रतीक्षा पूरी हुई| अभी वह भगवान् के भोगके लिये मीठे-मीठे फलोंको चखकर और उन्हें धोकर दोनोंमें सजा ही रही थी कि अचानक एक वृद्धने उसे सूचना दी - 'शबरी! तेरे राम भ्रातासाहित आ रहे हैं|' वृद्धके शब्दोंने शबरीमें नवीन चेतनाका संचार कर दिया| वह बिना लकुट लिये हड़बड़ीमें भागी| श्रीरामको देखते ही वह निहाल हो गयी और उनके चरणोंमें लोट गयी| देहकी सुध भूलकर वह श्रीरामको देखते ही वह निहाल हो गयी और उनके चरणोंमें लोट गयी| देहकी सुध भूलकर वह श्रीरामके चरणोंको अपने अश्रुजलसे धोने लगी| किसी तरह भगवान् श्रीरामने उसे उठाया| अब वह आगे-आगे उन्हें मार्ग दिखाती अपनी कुटियाकी ओर चलने लगी| कुटियामें पहुँचकर उसने भगवान् का चरण धोकर उन्हें आसनपर बिठाया| फलोंके दोने उनके सामने रखकर वह स्नेहसिक्त वाणीमें बोली - 'प्रभु! मैं आपको अपने हाथोंसे फल खिलाऊँगी| खाओगे न भीलनीके हाथके फल? वैसे तो नारी जाति ही अधम है और मैं तो अन्त्यज, मूढ और गँवार हूँ| 'कहते-कहते शबरीकी वाणी रुक गयी और उसके नेत्रोंसे अश्रुजल छलक पड़े|
श्रीरामने कहा - 'बूढ़ी माँ! मैं तो एक भक्तिका ही नाता मानता हूँ| जाति-पाति, कुल, धर्म सब मेरे सामने गौण हैं| मुझे भूख लग रही है, जल्दीसे मुझे फल खिलाकर तृप्त कर दो|' शबरी भगवान् को फल खिलाती जाती थी और वे बार-बार माँगकर खाते जाते थे| महर्षि मंतगकी वाणी आज सत्य हो गयी और पूर्ण हो गयी शबरीकी साधना| उसने भगवान् को सीताकी खोजके लिये सुग्रीवसे मित्रता करनेकी सलाह दी और स्वयंको योगाग्निमें भस्म करके सदाके लिये श्रीरामके चरणोंमें लीन हो गयी| श्रीराम-भक्तिकी अनुपम पात्र शबरी धन्य है|
Sunday, 1 June 2014
रामायण के प्रमुख पात्र - श्रीशत्रुघ्न
ॐ श्री साँईं राम जी
जब श्रीभरतजीके मामा युधाजित् श्रीभरतजीको अपने साथ ले जा रहे थे, तब श्रीशत्रुघ्नजी भी उनके साथ ननिहाल चले गये| इन्होंने माता-पिता, भाई, नवविवाहिता पत्नी सबका मोह छोड़कर श्रीभरतजीके साथ रहना और उनकी सेवा करना ही अपना कर्तव्य मान लिया था| भरतजीके साथ ननिहालसे लौटनेपर पिताके मरण और लक्ष्मण, सीतासहित श्रीरामके वनवासका समाचार सुनकर इनका हृदय दुःख और शोकसे व्याकुल हो गया| उसी समय इन्हें सूचना मिली कि जिस क्रूरा पापिनीके षड्यन्त्रसे श्रीरामका वनवास हुआ, वह वस्त्राभूषणोंसे सज-धजकर खड़ी है, तब ये क्रोधसे व्याकुल हो गये| ये मन्थराकी चोटीपकड़कर उसे आँगनमें घसीटने लगे| इनके लातके प्रहारसे उसका कूबर टूट गया और सिर फट गया| उसकी दशा देखकर श्रीभरतजीको दया आ गयी और उन्होंने उसे छुड़ा दिया| इस घटनासे श्रीशत्रुघ्नजीकी श्रीरामके प्रति दृढ़ निष्ठा और भक्तिका परिचय मिलता है|
चित्रकूटसे श्रीराम पादुकाएँ लेकर लौटते समय जब श्रीशत्रुघ्नजी श्रीरामसे मिले, तब इनके तेज स्वभावको जानकर भगवान् श्रीरामने कहा - 'शत्रुघ्न! तुम्हें मेरी और सीताकी शपथ है, तुम माता कैकेयीकी सेवा करना, उनपर कभी भी क्रोध मत करना|'
श्रीशत्रुघ्नजीका शौर्य भी अनुपम था| सीता-वनवासके बाद एक दिन ऋषियोंने भगवान् श्रीरामकी सभामें उपस्थित होकर लवणासुरके अत्याचारोंका वर्णन किया और उसका वध करके उसके अत्याचारोंसे मुक्ति दिलानेकी प्रार्थना की| श्रीशत्रुघ्नजीने भगवान् श्रीरामकी आज्ञासे वहाँ जाकर प्रबल पराक्रमी लवणासुरका वध किया और मथुरापुरी बसाकर वहाँ बहुत दिनोंतक शासन किया|
भगवान् श्रीरामके परमधाम पधारनेके समय मथुरामें अपने पुत्रोंका राज्याभिषेक करके श्रीशत्रुघ्नजी अयोध्या पहुँचे| श्रीरामके पास आकर और उनके चरणोंमें प्रणाम करके इन्होंने विनीत भावसे कहा - 'भगवन्! मैं अपने दोनों पुत्रोंका राज्याभिषेक करके आपके साथ चलनेका निश्चय करके ही यहाँ आया हूँ| आप अब मुझे कोई दूसरी आज्ञा न देकर अपने साथ चलनेकी अनुमति प्रदान करें|' भगवन् श्रीरामने शत्रुघ्नजीकी प्रार्थना स्वीकार की और वे श्रीरामचन्द्रके साथ ही साकेत पधारे|
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