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Monday, 24 March 2014

थैलीसीमिया thalassemia- जागरूकता जरूरी है


थैलीसीमिया thalassemia- एक अनुवांशिक रोग है। जागरूकता के अभाव के कारण पूरी दुनिया में इस रोग से पीड़ित बच्चों की संख्या लगातार बढ़ रही है। कम गंभीर मामलों में सही उपचार अपना कर सामान्य जीवन जिया जा सकता है। इसके लिए इसके प्रति जागरूक बहुत जरूरी है।
थैलीसीमिया एक रक्त संबंधी विकार है। इसमें हीमोग्लोबिन, जो शरीर में ऑक्सीजन को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाता है, में खराबी आ जाती है। इसके कारण लाल रक्त कणिकाएं नष्ट हो जाती हैं, जिससे गंभीर एनीमिया हो जाता है। हमारे देश में थैलीसीमिया के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। भारत में करीब 6 करोड़ लोग थैलेसीमिया माइनर से पीड़ित हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर वर्ष 7-10 हजार थैलीसीमिया से ग्रस्त बच्चों का जन्म होता है।
क्या होता है थैलीसीमिया
यह अनुवांशिक रोग है, जो बच्चों को माता-पिता से विरासत में मिलता है। थैलीसीमिया के दो प्रकार होते हैं:
थैलीसीमिया मेजर
थैलीसीमिया माइनर
थैलीसीमिया माइनर तब होता है, जब बच्चे को क्षतिग्रस्त जीन एक ही पैरेंट यानी माता या पिता में से किसी एक से मिलता है। लेकिन जब माता और पिता दोनों से ही उसे क्षतिग्रस्त जीन मिलेंगे तो मेजर थैलीसीमिया की पूरी आशंका होती है। यदि माता-पिता दोनों सामान्य हैं तो उनके बच्चे थैलीसीमिया से पीड़ित नहीं होंगे।
माता-पिता में से किसी एक को यदि माइनर थैलीसीमिया है तो बच्चों को यह हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता है। यदि माता-पिता दोनों को माइनर थैलीसीमिया हो तो बच्चे को थैलीसीमिया होने का खतरा ज्यादा रहता है। इसमें 25 प्रतिशत बच्चे सामान्य हो सकते हैं, 50 प्रतिशत को माइनर थैलीसिमिया व 25 प्रतिशत को मेजर थैलीसीमिया होने की आशंका अधिक होती है।
लक्षण
थैलीसीमिया मेजर के सबसे गंभीर रूप में मृत बच्चे का जन्म हो सकता है या गर्भावस्था के आखिरी समय में बच्चे की मृत्यु हो जाती है।
बच्चे जो थैलीसीमिया मेजर (कूले एनीमिया) के साथ जन्म लेते हैं, वे जन्म के समय सामान्य होते हैं, लेकिन जन्म के पहले वर्ष में उन्हें गंभीर एनीमिया हो जाता है।
अन्य लक्षण
चेहरे की हड्डियां का विकृत होना।
थकान।
असामान्य विकास।
त्वचा का पीला हो जाना (पीलिया)।
चेहरा सूख जाना और मुरझाया हुआ लगना।
लगातार कमजोरी और बीमारी की स्थिति बनी रहना, वजन नहीं बढ़ना।
उपचार
थैलीसीमिया मेजर के उपचार में नियमित अंतराल पर रक्त चढ़ाने की आवश्यकता होती है। जो लोग रक्ताधान (ब्लड ट्रांसफ्यूजन) ले रहे हैं, वे आयरन के सप्लीमेंट न लें, क्योंकि ऐसा करने से रक्त में आयरन की मात्रा बहुत बढ़ जाती है। इससे हृदय, लीवर और एंडोक्राइन सिस्टम क्षतिग्रस्त हो जाता है। थैलेसीमिया के रोगी को डायबिटीज यानि शूगर होने का खतरा बढ़ जाता है।
शरीर में आयरन का स्तर बढ़ जाने पर चिलेशन थेरेपी की आवश्यकता पड़ती है, जिसमें अतिरिक्त आयरन को शरीर से बाहर निकाला जाता है। बच्चों में इस रोग के उपचार के लिए अस्थि-मज्जा प्रत्यारोपण (बोन मैरो ट्रांसप्लांटेशन Bone marrow transplant) सबसे कारगर होता है, जो सगे भाई या बहन द्वारा दिया जा सकता है।
बचाव
गंभीर थैलीसीमिया में 20 से 30 साल की उम्र में ही हार्ट फेल होने से मृत्यु हो जाती है। थैलीसीमिया के कम गंभीर रूप में आयु कम नहीं होती है। नियमित रूप से रक्त चढ़ाने और चिलेशन थेरेपी से सामान्य जीवन जीने में मदद मिलती है। सबसे कारगर उपाय है कि शादी से पहले लड़का-लड़की अपना चेकअप करा लें। थैलीसीमिया से पीड़ित दो लोगों को कभी आपस में शादी नहीं करनी चाहिए।
संभव है थैलीसीमिया की रोकथाम
गर्भवती महिला को गर्भावस्था के पहले तीन महीनों में ही थैलीसीमिया की जांच करा लेनी चाहिए और अगर वह थैलीसीमिया की कैरियर है, तब पति की भी जांच करानी चाहिए। अगर दोनों पॉजीटिव हैं, तब एंटी-नेटल डायग्नोसिस कराना चाहिए कि कहीं बच्चे को थैलीसीमिया होने का खतरा तो नहीं है। अगर बच्चा इससे पीड़ित है तो गर्भपात करा लेना चाहिए। अगर थैलीसीमिया से पीड़ित दो लोग शादी कर लेते हैं तो जन्म लेने वाले बच्चे के थैलीसीमिया मेजर से पीड़ित होने का खतरा 25 प्रतिशत बढ़ जाता है।
इसका इलाज बहुत मंहगा है, क्योंकि पूरे जीवन भर उसे रक्ताधान कराना होता है। लगातार रक्ताधान और आयरन की मात्रा बढ़ने से जीवन पर खतरा और बढ़ जाता है।
प्री-इम्प्लांटेशन जेनेटिक डायग्नोसिस क्या है?
प्री-इम्प्लांटेशन जेनेटिक डायग्नोसिस एक प्रभावकारी तकनीक है, जिससे जैविक विकारों को माता-पिता से बच्चों में स्थानांतरित होने से रोका जा सकता है। इस डायग्नोसिस में मां को स्टीम्युलेशन देकर अंडे प्रोडय़ूस कराए जाते हैं, जिन्हें इकट्ठा कर निषेचित कराया जाता है। फिर इन भ्रूणों को विभिन्न बीमारियों के लिए टेस्ट किया जाता है जैसे- थैलीसीमिया, डाउन सिंड्रोम इत्यादि, और केवल सामान्य भ्रूणों को गर्भाशय में स्थानांतरित किया जाता