शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

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Wednesday 31 July 2013

श्री गुरु हरिगोबिन्द जी - गुरुदाद्दी मिलना

श्री गुरु हरिगोबिन्द जी  - गुरुदाद्दी मिलना



गुरुदाद्दी मिलना





जहाँगीर ने श्री गुरु अर्जन देव जी को सन्देश भेजा| बादशाह का सन्देश पड़कर गुरु जी ने अपना अन्तिम समय नजदीक समझकर अपने दस-ग्यारह सपुत्र श्री हरिगोबिंद जी को गुरुत्व दे दिया| उन्होंने भाई बुड्डा जी, भाई गुरदास जी आदि बुद्धिमान सिखों को घर बाहर का काम सौंप दिया| इस प्रकार सारी संगत को धैर्य देकर गुरु जी अपने साथ पांच सिखों-

· भाई जेठा जी

· भाई पैड़ा जी

· भाई बिधीआ जी

· लंगाहा जी

· पिराना जी


को साथ लेकर लाहौर पहुँचे|

इस प्रकार श्री गुरु अर्जन देव जी  लाहौर जाने से पहले ही श्री हरिगोबिंद जी को 14 संवत 1663 को गुरु गद्दी सौंप गए थे| परन्तु श्री गुरु अर्जन देव जी की रसम क्रिया वाले दिन आपको पगड़ी बांधी गई और आप जी गुरु गद्दी पर सुशोभित हुए|

गुरु घर की मर्यादा के अनुसार आप ने सेली टोपी के जगह सिर पर जिगा कलगी और मीरी-पीरी की दो तलवारे धारण की| आप ने कहा अब सेली टोपी पहनने का समय नहीं है| हमारे पिता जी श्री गुरु अर्जन देव जी  जो कि शांति के पुंज थे उनके साथ अत्याचारी राजा के अधिकारियों ने जो कुछ किया है उसका बदला और धर्म की रक्षा शस्त्र के बिना नहीं की जा सकती| इस जगह पर बैठकर जहाँ आप गुरु गद्दी पर सुशोभित हुए वहाँ आप जी ने आषाढ़ सुदी 10 संवत 1663 विक्रमी को अकाल बुग्गे की नीव रखी|

अकाल बुग्गे की तैयारी आरम्भ करके श्री गुरु हरिगोबिंद जी ने सब मसंदो और सिक्खों को हुक्मनामें लिखवा दिए कि जो सिख हमारे लिए घोड़े और शस्त्र भेंट लेकर आएगा, उसपर गुरु की बहुत मेहर होगी|

इसके बाद गुरु जी ने आप भी घोड़े और शस्त्र खरीदे| उन्होंने कुछ शूरवीर नौकर भी रखे| गुरु जी के हुक्मनामे को पड़कर बहुत तेजी से घोड़े और शस्त्र भेंट आनी शुरू हो गई| इस तरह थोड़े ही समय में गुरु जी के पास बहुत घोड़े और शस्त्र इकट्ठे हो गए|

अपने सिखों को युद्ध के लिए तैयार करने के लिए गुरु जी ने एक ढाडी अबदुल को नौकर रख लिया| दूसरे पहर के दीवान में वह शूरवीरों की शूरवीरता की वारे सुनाता| वारे और घोड़ सवारी का अभ्यास कराने के लिए रोज ही जंगल में शिकार खेलने के लिए ले जाता| इस प्रकार योद्धाओ का युद्ध अभ्यास बढता गया और सेना भी बढती गई|

Tuesday 30 July 2013

कुछ पल, उसके लिए....



गुड मार्निंग,

तुम जैसे ही सो कर उठे, तो मुझे लगा कि तुम मुझसे बात करोगे। मुझे लगा कि तुम कल य पिछले हफ्ते हुई किसी चीज़ के लिये मुहे थैंक्स कहोगे। लेकिन तुम इस उधेड़बुन में लग गये कि तुम्हे आज कौन से कपड़े पहनने है। फिर जब तुम अपने ऑफिस के कागज़ इक्कठे करने के लिये घर में इधर से उधर दौड़ रहे थे, तो भी मुझे लगा कि शायद अब तुम्हे मेरा ध्यान आयेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

मैं तुम्हें बताना चाहता था कि दिन का कुछ हिस्सा मेरे साथ बिता कर तो देखो, तुम्हारे काम और भी अच्छी तरह से होने लगेंगे, लेकिन तुमनें मुझसे बात ही नहीं की। एक मौका ऐसा भी आया जब तुम बिलकुल खाली थे और कुर्सी पर पूरे 15 मिनट यूं ही बैठे रहे, लेकिन तब भी तुम्हें मेरा ध्यान नहीं आया। दोपहर के खाने के वक्त जब तुम इधर-उधर देख रहे थे, तो भी मुझे लगा कि खाना खाने से पहले तुम एक पल के लिये मेरे बारे में सोचोंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

दिन का अब भी काफी समय बचा था। मुझे लगा कि शायद इस बचे समय में हमारी बात हो जायेगी, लेकिन घर पहुँचने के बाद तुम रोज़मर्रा के कामों में बिज़ी हो गये।

जब वे काम निबट गये तो तुमनें टीवी खोल लिया और घंटो टीवी देखते रहे। देर रात थककर तुम बिस्तर पर आ लेटे। तुमनें अपनी पत्नी, बच्चों को गुड नाईट कहा और चुपचाप चादर ओढ़्कर सो गये।

मेरा बड़ा मन था कि मैं भी तुम्हारी दिनचर्या का हिस्सा बनूं, तुम्हारे साथ कुछ मस्ती करूँ, तुम्हारी कुछ सुनूं, तुम्हे कुछ बताऊँ, लेकिन मैं मन मार कर ही रह गया।

मैं तुमसे बहुत प्रेम करता हूँ। हर रोज़ मैं इस बात का इंतज़ार करता हूँ कि काश आज तुम किसी अच्छे काम के लिये मुझे थैंक्स कहोगे, मेरा ध्यान करोगे लेकिन क्या करूँ, इंतज़ार करता ही रह जाता हूँ। खैर कोई बात नहीं, हो सकता है कल तुम्हें मेरी याद आ जाये।

तुम्हारा दोस्त

ईश्वर 

श्री गुरु हरिगोबिन्द जी जीवन – परिचय

श्री गुरु हरिगोबिन्द जी जीवन – परिचय



जीवन – परिचय



Parkash Ustav (Birth date): June 19, 1595; at Wadali village near Amritsar (Punjab).
प्रकाश उत्सव (जन्म की तारीख): 19 जून 1595, अमृतसर (पंजाब) के पास वडाली गांव में.

Father: Guru Arjan Dev ji
पिता जी : गुरू अर्जन देव जी

Mother: Mata Ganga ji
माता जी: माता गंगा जी

Mahal (spouse): Mata Nanaki ji , Mata Damodari ji , Mata Marvahi ji
सहोदर: - महल (पति या पत्नी): माता नानकी जी, माता दामोदरी जी, माता मरवाही जी

Sahibzaday (offspring): Baba Gurditta, Baba Viro, Baba Suraj Mal, Baba Ani Rai, Baba Atal Rai,
Baba Tegh Bahadur and a daughter.

साहिबज़ादे (वंश): बाबा गुरदित्ता जी, बाबा वीरो जी, बाबा सूरजमल, बाबा अनी राय, बाबा अटल राय,
बाबा तेग बहादुर और एक बेटी.

Joti Jyot (ascension to heaven): March 3, 1644
ज्योति  ज्योत (स्वर्ग करने के उदगम): 3 मार्च, 1644

पंज पिआले पंज पीर छठम पीर बैठा गुर भारी|| 

अर्जन काइआ पलटिकै मूरति हरि गोबिंद सवारी|| 

(वार १|| ४८ भाई गुरदास जी)



बाबा बुड्डा जी के वचनों के कारण जब माता गंगा जी गर्भवती हो गए, तो घर में बाबा पृथीचंद के नित्य विरोध के कारण समय को विचार करके श्री गुरु अर्जन देव जी ने अमृतसर से पश्चिम दिशा वडाली गाँव जाकर निवास किया| तब वहाँ श्री हरिगोबिंद जी का जन्म 21 आषाढ़ संवत 1652 को रविवार श्री गुरु अर्जन देव जी के घर माता गंगा जी की पवित्र कोख से वडाली गाँव में हुआ|

तब दाई ने बालक के विषय में कहा कि बधाई हो आप के घर में पुत्र ने जन्म लिया है| श्री गुरु अर्जन देव जी ने बालक के जन्म के समय इस शब्द का उच्चारण किया|


सोरठि महला ५ ||


परमेसरि दिता बंना || 
दुख रोग का डेरा भंना || 
अनद करहि नर नारी || 
हरि हरि प्रभि किरपा धारी || १ || 

संतहु सुखु होआ सभ थाई || 
पारब्रहमु पूरन परमेसरू रवि रहिआ सभनी जाई || रहाउ || 

धुर की बाणी आई || 
तिनि सगली चिंत मिटाई || 
दइिआल पुरख मिहरवाना || 
हरि नानक साचु वखाना || २ || १३ || ७७ || 

(श्री गुरु ग्रंथ साहिब, पन्ना ६२८)



श्री गुरु अर्जन देव जी ने बधाई की खबर अकालपुरख का धन्यवाद इस शब्द से किया-
आसा महला ५|| 


सतिगुरु साचै दीआ भेजि || 
चिरु जीवनु उपजिआ संजोगि || 
उदरै माहि आइि कीआ निवासु || 
माता कै मनि बहुतु बिगासु || १ || 

जंमिआ पूतु भगतु गोविंद का || 
प्रगटिआ सभ महि लिखिआ धुर का || रहाउ || 

दसी मासी हुकमी बालक जन्मु लीआ मिटिआ सोगु महा अनंदु थीआ || 
गुरबाणी सखी अनंदु गावै || 
साचे साहिब कै मनि भावै || १ || 

वधी वेलि बहु पीड़ी चाली || 
धरम कला हरि बंधि बहाली || 
मन चिंदिआ सतिगुरु दिवाइिआ || 
भए अचिंत एक लिव लाइिआ || ३ || 

जिउ बालकु पिता ऊपरि करे बहु माणु || 
बुलाइिआ बोलै गुर कै भाणि || 
गुझी छंनी नाही बात || 
गुरु नानकु तुठा कीनी दाति || ४ || ७ || १०१ || 

(श्री गुरु ग्रंथ साहिब: पन्ना ३९६)

साहिबजादे की जन्म की खुशी में श्री गुरु अर्जन देव जी ने वडाली गाँव के पास उत्तर दिशा में एक बड़ा कुआँ लगवाया, जिस पर छहरटा चाल सकती थी| गुरु जी ने छहरटे कुएँ को वरदान दिया कि जिस स्त्री के घर संतान नहीं होती या जिसकी संतान मर जाती हो, वह स्त्री अगर नियम से बारह पंचमी इसके पानी से स्नान करे और नीचे लीखे दो शब्दों के 41 पाठ करे तो उसकी संतान चिरंजीवी होगी| 

पहला शब्द-

सतिगुरु साचै दीआ भेजि||




दूसरा शब्द- 

बिलावलु महला ५||

सगल अनंदु कीआ परमेसरि अपणा बिरदु सम्हारिआ || 
साध जना होए क्रिपाला बिगसे सभि परवारिआ || १ || 

कारजु सतिगुरु आपि सवारिआ || 
वडी आरजा हरि गोबिंद की सुख मंगल कलियाण बीचारिआ || १ || रहाउ || 

वण त्रिण त्रिभवण हरिआ होए सगले जीअ साधारिआ || 
मन इिछे नानक फल पाए पूरन इछ पुजारिआ || २ || ५ || २३ || 

(श्री गुरु ग्रंथ साहिब: पन्ना ८०६-०७)




कुछ समय के बाद एक दिन श्री हरि गोबिंद जी को बुखार हो गया| जिससे उनको सीतला निकाल आई| सारे शरीर और चेहरे पर छाले हो गए| इससे माता और सिख सेवकों को चिंता हुई| श्री गुरु अर्जन देव जी ने सबको कहा कि बालक का रक्षक गुरु नानक आप हैं| चिंता ना करो बालक स्वस्थ हो जाएगा|

जब कुछ दिनों के पश्चात सीतला का प्रकोप धीमा पड गया और बालक ने आंखे खोल ली| गुरु जी ने परमात्मा का धन्यवाद इस शब्द के उच्चारण के साथ किया-




राग गउड़ी महला ५|| 


नेत्र प्रगास कीआ गुरदेव || 
भरम गए पूरन भई सेव || १ || रहाउ || 

सीतला ने राखिआ बिहारी || 
पारब्रहम प्रभ किरपा धारी || १ || 

नानक नामु जपै सो जीवै || 
साध संगि हरि अंमृतु पीवै || २ || १०३ || १७२ || 

(श्री गुरु ग्रंथ साहिब: पन्ना २००)

श्री गुरु हरि गोबिंद जी के तीन विवाह हुए| 

पहला विवाह -
12 भाद्रव संवत 1661 में (डल्ले गाँव में) नारायण दास क्षत्री की सपुत्री श्री दमोदरी जी से हुआ|

संतान -
बीबी वीरो, बाबा गुरु दित्ता जी और अणी राय|


दूसरा विवाह -
8 वैशाख संवत 1670 को बकाला निवासी हरीचंद की सुपुत्री नानकी जी से हुआ|

संतान -
श्री गुरु तेग बहादर जी|


तीसरा विवाह -
11 श्रावण संवत 1672 को मंडिआला निवासी दया राम जी मरवाह की सुपुत्री महादेवी से हुआ|

संतान -
बाबा सूरज मल जी और अटल राय जी|

Monday 29 July 2013

श्री गुरु अर्जन देव जी - शहीदी

श्री गुरु अर्जन देव जी - शहीदी


श्री गुरु अर्जन देव जी की शहीदी

जहाँगीर ने गुरु जी को सन्देश भेजा| बादशाह का सन्देश पड़कर गुरु जी ने अपना अन्तिम समय नजदीक समझकर अपने दस-ग्यारह सपुत्र श्री हरिगोबिंद जी को गुरुत्व दे दिया| उन्होंने भाई बुड्डा जी, भाई गुरदास जी आदि बुद्धिमान सिखों को घर बाहर का काम सौंप दिया| इस प्रकार सारी संगत को धैर्य देकर गुरु जी अपने साथ पांच सिखों-


· भाई जेठा जी


· भाई पैड़ा जी


· भाई बिधीआ जी


· लंगाहा जी


· पिराना जी 

को साथ लेकर लाहौर पहुँचे| 

दूसरे दिन जब आप अपने पांच सिखों सहित जहाँगीर के दरबार में गए| तो उसने कहा आपने मेरे बागी पुत्र को रसद और आशीर्वाद दिया है| आपको दो लाख रूपये जुरमाना देना पड़ेगा नहीं तो शाही दण्ड भुगतना पड़ेगा| गुरु जी को चुप देखकर चंदू ने कहा कि मैं इन्हें अपने घर ले जाकर समझाऊंगा कि यह जुरमाना दे दें और किसी चोर डकैत को अपने पास न रखें| चंदू उन्हें अपने साथ घर में ले गया| जिसमे पांच सिखों को ड्योढ़ि में और गुरु जी को ड्योढ़ि के अंदर कैद कर दिया| चंदू ने गुरु जी को अकेले बुलाकर यह कहा कि मैं आपका जुर्माना माफ करा दूँगा, कोई पूछताछ भी नहीं होगी| इसके बदले में आपको मेरी बेटी का रिश्ता अपने बेटे के साथ करना होगा और अपने ग्रंथ में मोहमद साहिब की स्तुति लिखनी होगी| 

गुरु जी ने कहा दीवान साहिब! रिश्ते की बाबत जो हमारे सिखों ने फैसला किया है, हम उस पर पावंध हैं| हमारे सिखों को आपका रिश्ता स्वीकार नहीं है| दूसरी बात आपने मोहमद साहिब की स्तुति लिखने की बात की है यह भी हमारे वश की बात नहीं है| हम किसी की खुशी के लिए इसमें अलग कोई बात नहीं लिख सकते| प्राणी मात्र के उपदेश के लिए हमें करतार से जो प्रेरणा मिलती है इसमें हम वही लिख सकतें हैं|

गुरु जी का यह उत्तर सुनते ही चंदू भड़क उठा| उसने अपने सिपाहियों को हुकम दिया कि इन्हें किसी आदमी से ना मिलने दिया जाए और ना ही कुछ खाने पीने को दिया जाए| 

गुरु जी को कष्ट देने:

१. पानी की उबलती हुई देग में बिठाना


दूसरे दिन जब गुरु जी ने चंदू की दोनों बाते मानने से इंकार कर दिया तो उसने पानी की एक देग गर्म करा कर गुरु जी को उसमें बिठा दिया|गुरु जी को पानी की उबलती हुई देग में बैठा देखकर सिखों में हाहाकार मच गई| वै जैसे ही गुरु जी को निकालने के लिए आगे हुए,सिपाहियों ने उनको खूब मारा| सिखों पार अत्याचार होते देख गुरु जी ने उनको कहा, परमेश्वर का हुकम मानकर शांत रहो| हमारे शरीर त्यागने का समय अब आ गया है|


२. गर्म रेत शरीर पर डालना 

जब गुरु जी चंदू की बात फिर भी ना माने, तो उसने गुरु जी के शरीर पार गर्म रेत डलवाई| परन्तु गुरु जी शांति के पुंज अडोल बने रहे "तेरा भाना मीठा लागे" हरि नाम पदार्थ नानक मांगै" पड़ते रहे| देखने और सुनने वाले त्राहि-त्राहि कर उठे| परन्तु कोई कुछ भी नहीं कर पाया| गुरु जी का शरीर छालों से फूलकर बहुत भयानक रूप धारण कर गया| 


३. गर्म लोह पर बिठाना

तीसरे दिन जब गुरु जी ने फिर चंदू की बात मानी, तो उसने लोह गर्म करवा कर गुरु जी को उसपर बिठा दिया| गुरु जी इतने पीड़ाग्रस्त शरीर से गर्म लोह पर प्रभु में लिव जोड़कर अडोल बैठे रहे| लोग हाहाकार कर उठे|

Sunday 28 July 2013

श्री गुरु अर्जन देव जी - ज्योति - ज्योत समाना

श्री गुरु अर्जन देव जी - साखियाँ









गुरु अर्जन देव जी का ज्योति - ज्योत समाना

जब दिन निकला तो चंदू फिर अपनी बात मनाने के लिए गुरु जी के पास पहुँचा| परन्तु गुरु जी ने फिर बात ना मानी|उसने गुरु जी से कहा कि आज आपको मृत गाए के कच्चे चमड़े में सिलवा दिया जाएगा| उसकी बात जैसे ही गुरु जी ने सुनी तो गुरु जी कहने लगे कि पहले हम रावी नदी में स्नान करना चाहते है, फिर जो आपकी इच्छा हो कर लेना| गुरु जी कि जैसे ही यह बात चंदू ने सुनी तो खुश हो गया कि इन छालों से सड़े हुए शरीर को जब नदी का ठंडा पानी लगेगा तो यह और भी दुखी होंगे| अच्छा यही है कि इनको स्नान कि आज्ञा दे दी जाए|

चंदू ने अपने सिपाहियों को हुकम दिया कि जाओ इन्हे रावी में स्नान कर लाओ| तब गुरु जी अपने पांच सिखों सहित रावी पर आ गए|गुरु जी ने नदी के किनारे बैठकर चादर ओड़कर "जपुजी साहिब" का पाठ करके भाई लंगाह आदि सिखों को कहा कि अब हमरी परलोक गमन कि तैयारी है|आप जी श्री हरिगोबिंद को धैर्य देना और कहना कि शोक नहीं करना, करतार का हुकम मनना| हमारे शरीर को जल प्रवाह ही करना, संस्कार नहीं करना|

इसके पश्चात गुरु जी रावी में प्रवेश करके अपना शरीर त्याग कर सचखंड जी बिराजे| उस दिन ज्येषठ सुदी चौथ संवत १५५३ बिक्रमी थी| गुरु जी का ज्योति ज्योत समाने का सारे शहर में बड़ा शोक बनाया गया| गुरु जी के शरीर त्यागने के स्थान पर गुरुद्वारा ढ़ेरा साहिब लाहौर शाही किले के पास विद्यमान है|

सिखों ने गुरु साहिब की शहीदी की खबर माता जी और सिख संगतो को बताई तो सबको बड़ा दुख हुआ| बाबा बुड्डा जी ने सबको धैर्य देते हुए कहा आप गुरु जी की वाणी का ध्यान करो| गुरु जी लोक भलाई व परोपकार के कार्य के लिए अपने बैकुंठ धाम को गए हैं| इसलिए उनके लिए शोक करना उचित नहीं है| शोक उनके लिए करना उचित होता है जो अपनी सारी उम्र जगत के भोग विलास में लगाकर सत्संग और नाम सुमिरन के बिना ही व्यतीत कर जाते हैं| इस तरह भाई बुड्डा जी ने सबको समझाकर धैर्य दिया और शांत करके बिठाया|

Saturday 27 July 2013

श्री गुरु अर्जन देव जी - साखियाँ - योगी को परमपद की प्राप्ति

श्री गुरु अर्जन देव जी - साखियाँ







योगी को परमपद की प्राप्ति

श्री गुरु अर्जन देव जी ने अपने गुरु पिता के वचन याद किए कि हमारी सेवा इन तीर्थों की सेवा है| इस प्रकार अमृत सरोवर के बाद संतोखसर तीर्थ की सेवा आरम्भ करने का विचार बनाया| इस सरोवर को श्री गुरु राम दास जी द्वारा आरम्भ कराया गया था| खोदे हुए गड्डे में वर्षा का पानी एकत्रित हो गया तथा चारों और बेरियों और वृक्षों के झुण्ड थे|

सेवा का ऐसा विचार रखते हुए श्री गुरु अर्जन देव जी कुछ सिखों को साथ लेकर एक टाहली के नीचे आ बैठे| बहुत से मजदूरों और कुछ सिख सेवकों को सरोवर खोदने के लिए लगा दिया गया| सभी जोश व लगन के साथ सरोवर की खुदाई में लगे हुए थे|

एक दिन मिट्टी के नीचे से एक गोलाकार मठ निकला जिसमे योगी समाधि लगाये बैठा था| गुरु जी ने उसको मखन, कस्तूरी व केसर की मालिश उसके सिर व पैरों पर कराकर समाधि खुलवाई| जब उस योगी ने बाबा बुड्डा जी व गुरु जी को सामने खड़ा पाया तो पूछने लगा कि यह कोनसा युग है और आप कौन हैं| बाबा जी ने बताया अब कलयुग है तथा जो उनके पास खड़े हैं वह श्री गुरु नानक देव जी की गद्दी पर विराजमान पाँचवे गुरु अर्जन देव जी हैं|

उस योगी ने जैसे ही बाबा जी की बात सुनी तो झट से कहा कि मेरा तप पूरण हो गया है| मेरे गुरु का वचन हुआ था कि जब कलियुग आएगा तो तुम गुरु अवतार के दर्शन करोगे और तभी तुम्हारा कल्याण होगा| आज वह समय आ गया है| मेरे मन को शांति मिली है| यह वचन करके योगी ने हाथ जोड़ दिए और गुरु जी को नमस्कार की| इसके पश्चात अपना शरीर त्यागकर परमपद को प्राप्त हो गया|

Friday 26 July 2013

श्री गुरु अर्जन देव जी - साखियाँ - शहर के दुकानदारों की प्रार्थना

श्री गुरु अर्जन देव जी - साखियाँ







शहर के दुकानदारों की प्रार्थना

एक दिन सभी दुकानदार जो गुरु बाज़ार में रहते थे मिलकर गुरु अर्जन देव जी के पास आए और प्रार्थना करना लगे महाराज! आप जी ने हम पर बड़ी कृपा की है| हमें यहाँ बसाया है और काम-काज बक्शा है| पर यहाँ कोई ग्राहक आता है और न ही कोई व्यापर होता है| काम काज न होने के कारण गुजारा करने में बहुत दिक्कत आती है| अब आप ही बताएँ की क्या किया जाए?

गुरु जी ने वचन किया: आप रोजाना सुबह दरबार साहिब आकर माथा टेककर आया करो| उसके पश्चात ही आप अपनी दूकाने खोल कर काम-काज शुरू किया करो| आपको कभी कोई कमी नहीं आएगी व आपका काम बहुत चलेगा| ऐसा वरदान पाकर सभी दुकानदार खुश हो गए|

Thursday 25 July 2013

श्री साई सच्चरित्र अध्याय 33

ॐ सांई राम


आप सभी को शिर्डी के साईं बाबा ग्रुप की और से साईं-वार की हार्दिक शुभ कामनाएं
हम प्रत्येक साईं-वार के दिन आप के समक्ष बाबा जी की जीवनी पर आधारित श्री साईं सच्चित्र का एक अध्याय प्रस्तुत करने के लिए श्री साईं जी से अनुमति चाहते है
हमें आशा है की हमारा यह कदम घर घर तक श्री साईं सच्चित्र का सन्देश पंहुचा कर हमें सुख और शान्ति का अनुभव करवाएगा
किसी भी प्रकार की त्रुटी के लिए हम सर्वप्रथम श्री साईं चरणों में क्षमा याचना करते है...

श्री साई सच्चरित्र अध्याय 33

उदी की महिमा, बिच्छू का डंक, प्लेग की गाँठ, जामनेर का चमत्कार, नारायण राव, बाला बुवा सुतार, अप्पा साहेब कुलकर्णी, हरीभाऊ कर्णिक ।
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Wednesday 24 July 2013

श्री गुरु अर्जन देव जी - साखियाँ - सनमुख व बेमुख की परिभाषा

श्री गुरु अर्जन देव जी - साखियाँ









सनमुख व बेमुख की परिभाषा

एक दिन समुंदे ने गुरु अर्जन देव जी से प्रार्थना की कि महाराज! हमारे मन में एक शंका है जिसका आप निवारण करें| उन्होंने कहा सनमुख कौन होता है और बेमुख कौन? गुरु जी पहले उसकी बात को सुनते रहे फिर उन्होंने वचन किया, भाई सनमुख वह होता है जो सदैव अपनी मालिक की आज्ञा में रहता है|जैसे परमात्मा ने मनुष्य को नाम जपने व स्नान करने के लिए संसार में भेजा है|

इस प्रकार जो मनुष्य इस आज्ञा का पालन करता है जिसमे शारीरिक शुद्धता के लिए स्नान करना व मन की शुद्धता के लिए नाम जपना और शारीरिक आरोग्यता के लिए भूखे नंगे को यथा शक्ति दान करता है वाही सनमुख होता है| वही गुरु की आज्ञा में रहने वाला गुरु सिख होता है| ऐसा मनुष्य सदैव सुखी रहता है तथा दुख उसके नजदीक नहीं आता|

गुरु जी मनमुख भाव बेमुख की बात करने लगे कि वह पुरुष जो सदा माया के व्यवहार में ही लगा रहता है| अपने मालिक प्रभु की ओर ध्यान नहीं देता और सारा समय मोह-माया में ही व्यतीत कर देता है| ऐसा पुरुष सदैव दुखी रहता है| वह कभी भी सुख को प्राप्त नहीं कर पाता| इस प्रकार गुरूजी नी सनमुख व बेमुख की परिभाषा समुंदे को समझाई|

बाला और कुष्णा पंडित को मन शांति का उपदेश

बाला और कुष्णा पंडित लोगों को सुन्दर कथा करके खुश किया करते थे और सबके मन को शांति प्रदान करते थे| एक दिन वे गुरु अर्जन देव जी के दरबार में उपस्थित हो गए और प्रार्थना करने लगे कि महाराज! हमारे मन में शांति नहीं है| आप बताएँ हमें शांति किस प्रकार प्राप्त होगी हमें इसका कोई उपाय बताए?

गुरु जी कहने लगे अगर आप मन की शांति चाहते हो तो जैसे आप लोगों को कहते हो उसी प्रकार आप भी उस कथनी पर अमल किया करो| परमात्मा को अंग-संग जानकर उसे याद रखा करो| अगर आप धन इक्कठा करने की लालसा से कथा करोगे तो मन को शांति कदापि प्राप्त नहीं होगी| मन की लालसा बढती जायेगी और आप दुखी होते रहेंगे| इस प्रकार आप निष्काम भाव से कथा किया करे जिससे आपके मन को शांति प्राप्त होगी|

Tuesday 23 July 2013

श्री गुरु अर्जन देव जी - साखियाँ - करे कराए आपे प्रभू

श्री गुरु अर्जन देव जी - साखियाँ








करे कराए आपे प्रभू

एक दिन गुरु अर्जन देव जी के पास चड्डे जाति के दटू, भानू, निहालू और तीर्था आए| उन्होंने आकर गुरु जी से प्रार्थना की महाराज! हमें तो आपके वचनों की समझ ही नहीं आती| एक जगह आप जी लिखते हैं -

"करे कराए आपि प्रभू, सभु किछु तिसही हाथ|"

पर दूसरे स्थान पर आप जी यह लिखते हैं -

जैतसरी महला ५ वार सलोका नालि
"जैसा बीजै सो लुणै करम इहु खेत||"

गुरु जी कहने लगे हे भाई! जिस प्रकार बुद्धिमान वैद किसी रोगी का रोग देखकर दवाई देता है उसी प्रकार सिख के जीवन-व्यवहार, रहणी-बहणी को देख कर उपदेश दिया जाता है| जैसे कि जो दुनियादारी के कामों में लगा हुआ करम करता है, उसको अच्छे कर्मों की प्रेरणा के लिए 'जैसा बीजै सो लुणै' का अधिकारी समझ कर उपदेश दिया जाता है|

परन्तु जो कोई विचारशील होकर परमात्मा की भक्ति करता है उसको 'करे कराए आपि प्रभू' का उपदेश दिया जाता है| ऐसा ना हो कि कहीं उसको अपनी करनी का गर्व हो जाए| इस प्रकार गुरु का उपदेश सिख की अध्यात्मिक अवस्था को ध्यान में रखकर दिया जाता है| इसलिए सिख को किसी प्रकार का भ्रम नहीं करना चाहिए| उसको अपनी मानसिक अवस्था के अनुसार उपदेश ग्रहण करना चाहिए|

Monday 22 July 2013

श्री गुरु अर्जन देव जी - साखियाँ - दयालु गुरु श्री अर्जन देव जी

श्री गुरु अर्जन देव जी - साखियाँ



 
 
 
 
 
 
दयालु गुरु श्री अर्जन देव जी
श्री गुरु अर्जन देव जी के दरबार में दो डूम सत्ता और बलवंड कीर्तन करते थे| एक दिन डूमो ने गुरु जी से आर्थिक सहायता माँगी कि उनकी उनकी बहन का विवाह है| गुरु जी कहने लगे सुबह कीर्तन की जो भेंट आएगी वह सारी रख लेना| ईश्वर की कृपा से उस दिन बहुत कम भेंट आई| जिसको लेने से डूमों ने इंकार कर दिया| वे गुस्से में भर गए व गुरु दरबार पर कीर्तन करना ही छोड़ दिया| गुरु जी ने सिखों को उनके पास भेजा कि गुरु दरबार पर आकर फिर से कीर्तन करना शुरू करें|

पर उन दोनों ने आने से इंकार कर दिया| गुरु जी कहने लगे कि लगता है कि उन्हें अहंकार हो गया है| अब हमारा कोई भी गुरु सिक्ख इनको मुहँ ना लगाये| जो इनकी सिफारिश करेगा उसका मुँह का करके गधों पर बिठाकर पेश किया जायेगा|

कुछ समय बाद जब वे भूख से दुखी हो गए|वे सिखों से कहने लगे कि हमें माफ कार दें|| परन्तु किसे ने कोई बात ना मानी|,वे तंग होकर लाहौर भाई लधा जी के पास आए| उन्होंने सारी बात गुरु जी को बताई कि आप ही हम पर दया करके गुरु जी से क्षमा दिला दें|

उनकी बात सुनकर लधा जी को तरस आ गया| उन पर तरस खाकर व गुरु जी क आज्ञा का पालन करे हुए अपना मुँह काला कर लिया|गधे पर चढ़ कर उनके साथ गुरु जी के पास आए| गुरु जी के पास आकर उन्होंने प्रार्थना कि महाराज! इनको क्षमा कर दो| ये बहुत दुखी है| आप से क्षमा मांगते है|

उनकी बात सुनकर गुरु जी कहने लगे कि जिस मुख से इन्होंने गुरु घर कि निन्दा कि है,उसी मुख से गुरु घर कि स्तुति करेंगे| तभी इन्हे क्षमा किया जाएगा|ऐसी बात सुनकर सत्ते व बलवंड ने गुरु जी के सामने खड़े होकर राग रामकली में एक वार के द्वारा पाँचो गुरु साहिबान कि शलाघा गयी| यह सुनकर गुरु जी प्रसन्न हो गए|उन्हें कीर्तन करने कि भी आज्ञा गुरु जी द्वारा दे दी गई|

श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के पन्ना ८६६ पर यह "रामकली की वार राइ बलवंड तथा सत्ते डूमि आखी||" के नाम से दर्ज है|




Sunday 21 July 2013

श्री गुरु अर्जन देव जी - साखियाँ - झूठ का त्याग व उपदेश

श्री गुरु अर्जन देव जी - साखियाँ







 
 
 
झूठ का त्याग व उपदेश
 
एक दिन भाई पुरीआ और चूहड़ पट्टी से गुरु जी के दर्शन करने आए| उन्होंने गुरु जी के आगे भेंट रखी व माथा टेका| उन्होंने गुरु जी से प्रार्थना की कि महाराज! हम अपने गाँव के चौधरी है और हमें झूठ भी बहुत बोलना पड़ता है| हम इसका त्याग किस प्रकार करें? 

उनकी यह बात गुरु जी ने सुनी और कहने लगे कि आप अपने नगर में एक धर्मशाला बनवाओ| उसमे दो समय सत्संग भी किया करो| आप रोजाना जो झूठ बोलते हे वह दीवान में संगत में सुनाया करो|

गुरु जी कि बात को वह ध्यानपूर्वक सुनते रहे| उन्होंने ऐसे ही किया जैसे गुरु जी ने उनको बोला था| धर्मशाला बनवाई गई| उसमे दो समय सत्संग भी रखा गया| उन्होंने अपना झूठ भी संगत के सामने रखना शरू कर दिया| 

जब कुछ दिन ऐसा ही होता रहा,वे लज्जा अनुभव करने लगे| उन्होंने झूठ बोलना कम कर दिया|वे कम से कम झूठ बोलने का यत्न करते| ऐसा करते-२ उनकी झूठ बोलने की आदत ही खतम हो गए|अब वे सच बोलने के आदि हो गए| उन्होंने गुरु जी का लाख-२ शुकराना किया|

Saturday 20 July 2013

श्री गुरु अर्जन देव जी - साखियाँ - मूसन का कटा सिर जोड़ना

श्री गुरु अर्जन देव जी - साखियाँ





 


मूसन का कटा सिर जोड़ना
लाहौर शहर के शाहबाज़पुर गाँव में संमन (पिता) और मूसन (पुत्र) आजीविका के लिए मजदूरी करते थे| एक दिन संगत की देखा देखी गुरु जी को संगत समेत भोजन करने की प्रार्थना की| परन्तु जब उन्होंने देखा कि संगत को खिलने के लिए उनके पास पूरे पैसे नहीं हैं और न ही प्रबंध हो सकता है| तो उन्होंने रात को साहूकार के कोठे की छत फाडकर छेद कर लिया| इस छेद में से मूसन नीचे उतर गया और अपने जरूरत की चीजें घी, शक्कर और आटा आदि अपने पिता को पकडाता रहा|

सब चीजें पकड़ाकर मूसन जैसे ही उपर आने लगा तो घर वालों की नींद खुल गई| उन्होंने मूसन की टाँगे पकड़ ली| मूसन ने अपने पिता से कहना शुरू किया कि पिताजी! आप मेरा सिर काटकर ले जाए| अगर आप ऐसा नहीं करेगें तो लोग मुझे सिर से पहचान लेंगे और कहेंगे कि गुरु के सिख चोर हैं| गुरु के नाम को धब्बा लगवाना ठीक नहीं है|

पिता ने वैसे ही किया जैसे पुत्र ने कहा था| उधर जब साहूकार ने बिना सिर के मुर्दा देखा तो वह यह सोचकर कि कत्ल का इल्जाम मेरे सिर ना लग जाए, भागा-भागा संमन के पास गया| उसने जाकर कहा कि मैं तुम्हें बहुत पैसे दूँगा| इसके लिए तुम्हें मेरे घर से मुर्दा उठाना होगा| इसे ऐसी जगह फैंक आओ जहाँ इसे कोई न देख सके|

संमन शीघ्रता से साहूकार के घर गया और अपने मृत बेटे को उठाकर के आया| उसने उसे अपने घर के पीछे वाले कमरे में सिर जोड़कर कपड़े से ढककर रख दिया| इसके पश्चात वह साहूकार के पास गया और अपनी जरूरत के अनुसार पैसे लेकर, गुरु जी व संगत के लिए खाना बनाने के लिए हलवाई को बुला लाया| सारा लंगर तैयार हो गया| गुरु जी भी संगत सहित आगए| पंगते भी लग गई| सबको खाना परोस दिया गया|

तब गुरु जी ने संमन से पूछा कि मूसन कहाँ है| वह संगत की सेवा में हाजिर क्यों नहीं हुआ? संमन चुप-चाप खड़ा रहा| उसकी चुप्पी को देखकर गुरु जी ने मूसन को आवाज़ लगाई कि आकर संगतो की सेवा करे| गुरु जी की आवाज़ सुनकर मूसन हाज़िर हो गया और के चरणों में माथा टेक हाथ जोड़कर खड़ा हो गया|

गुरु जी बाप-बेटे की गुरु घर के प्रति श्रद्धा देखकर संमन को सम्बोधित करके बोले -

चउबोले महला ५||
संमन जउ इस परेम की दमकिहु होती साट||
रावन हुते सु रंक नहि जिनि सिर दीने काट||१||
(श्री गुरु ग्रंथ साहिब पन्ना १३६३)

अर्थात - हे संमन सिख! जो प्रेम तुमने दिखलाया है, अगर इस के बदलाव पैसों के साथ हो सकता होता, तो फिर लंका पति रावण कंगाल नहीं था जिसने अपने इष्ट शिव जी को अपना सिर ग्यारह बार काटकर प्रेम भेंट किया था| प्रेम तन और मन माँगता है धन नहीं|

यह वचन करके गुरु जी ने दोनों बाप बेटों को शाबाशी दी|


Friday 19 July 2013

श्री गुरु अर्जन देव जी - साखियाँ - सुख प्राप्ति का साधन

श्री गुरु अर्जन देव जी - साखियाँ






सुख प्राप्ति का साधन

 
एक दिन श्री गुरु अर्जन देव जी के पास दो सिख हाजिर हुए| उन्होंने आकर गुरु जी से प्रार्थना की कि गुरु जी! हम सदैव दुखी रहते हैं| हमे सुख किस प्रकार प्राप्त हो सकता है? हम अपने दुखों से निजात पाना चाहते हैं| इसलिए गुरु जी आप ही हमें दुखों से बाहर निकाल सकते हैं| हमे इसका कोई उपाय बताएँ|

गुरु जी पहले उनकी बात ध्यान पूर्वक सुनते रहें| जब उन्होंने अपनी सारी बात गुरु जी के आगे रख दी तो गुरु जी ने कहना शुरू किया भाई! अरोग शरीर, सुशील स्त्री, आज्ञाकारी पुत्र और धन-धान्य के सुख पिछले जन्म में किए दान पुण्य के फल स्वरूप ही मिलते हैं| भाव मनुष्य को पिछले जन्म के अनुसार ही फल प्राप्त होता है|

आगे गुरु जी कहने लगे की ग्रहस्थी का बड़ा धर्म दान पुण्य करना और नेक कमाई ही है| इसलिए आप भी नेक कमाई, पुण्य दान और सत्संग किया करो| इससे आपके दुखों का नाश होगा| दुख आपको छुह भी नहीं पाएंगे| आपको सुखो की प्राप्ति होगी|

Thursday 18 July 2013

श्री साई सच्चरित्र अध्याय 32

ॐ सांई राम


आप सभी को शिर्डी के साईं बाबा ग्रुप की और से साईं-वार की हार्दिक शुभ कामनाएं, हम प्रत्येक साईं-वार के दिन आप के समक्ष बाबा जी की जीवनी पर आधारित श्री साईं सच्चित्र का एक अध्याय प्रस्तुत करने के लिए श्री साईं जी से अनुमति चाहते है, हमें आशा है की हमारा यह कदम घर घर तक श्री साईं सच्चित्र का सन्देश पंहुचा कर हमें सुख और शान्ति का अनुभव करवाएगा, किसी भी प्रकार की त्रुटी के लिए हम सर्वप्रथम श्री साईं चरणों में क्षमा याचना करते है...

श्री साई सच्चरित्र अध्याय 32
गुरु और ईश्वर की खोज, उपवास अमान्य
........................................
इस अध्याय में हेमाडपंत ने दो विषयों का वर्णन किया है ।
1. किस प्रकार अपने गुरु से बाबा की भेंट हुई और उनके द्घारा ईश्वरदर्शन की प्राप्ति कैसे हुई ।
2. श्रीमती गोखले को जो तीन दिन से उपवास कर रही थी, उसे पूरनपोली के भोजन कराये ।

Wednesday 17 July 2013

श्री गुरु अर्जन देव जी - साखियाँ - मन की शांति का साधन

श्री गुरु अर्जन देव जी - साखियाँ



मन की शांति का साधन


एक दिन सुल्तान्पुत के निवासी कालू, चाऊ, गोइंद, घीऊ, मूला, धारो, हेमा, छजू, निहाला, रामू, तुलसा, साईं, आकुल, दामोदर, भागमल, भाना, बुधू छीम्बा, बिखा और टोडा भाग मिलकर गुरु अर्जन देव जी के पास आए| उन्होंने आकर प्रार्थना की कि महाराज! हम रोज सवेरे उठकर स्नान करके गुरबानी का पाठ करने के बाद ही अपनी कृत करते हैं| मन को संयम में रखते हैं| संयम में रखने के बाद भी मन में कलहे ही रहती है| गुरु जी कृपा करके ऐसा उपदेश दो जिससे कलह समाप्त हो और मन को शांति मिले|

गुरु जी ने उनकी बात सुनी और कहने लगे कि जब तक मन से रजो गुण और तमो गुण का त्याग ना किया जाए तब तक मन को शांति नहीं मिल सकती| इसलिए इनका त्याग जरूरी है| आगे से सिख पूछने लगे महाराज! इस गुणों की परीक्षा किस प्रकार की जा सकती है|

गुरु जी फरमाने लगे हिंसा (जीव हत्या) और क्रोध तमो गुण में आते हैं| लोभ और अभिमान यह रजो गुण में आते हैं| इसलिए इनका त्याग जरूरी है|

तमो गुण के लक्षण-

· रात का बासी, खट्टा और चटपटा भोजन खाना

· बहुत अधिक सोना

· झूठ बोलना

· गन्दा रहना

· परायी निन्दा करनी

· बुरी संगत करनी


रजो गुण के लक्षण-

· भड़कीले वस्त्र पहनना

· मांस का सेवन करना

· अपना बडप्पन चाहाना


शांति गुण के लक्षण-

· उज्जवल सफ़ेद वस्त्र पहनने

· स्नान आदि में नियमित होना

· चावल दाल आदि स्वच्छ भोजन करना

· थोड़ा सोना व थोड़ा खाना

· एक मन होकर कथा कीर्तन सुनना


राजसी गुण के लक्षण-

· जिसका कभी मन टिके और कभी न टिके व राजसी गुण की निशानियाँ हैं|


तामसिक गुण के लक्षण-

· जिसका मन कभी टिके ही न, शब्द वाणी की समझ भी कोई न आए उसे तामसिक गुण वाला समझे|


अन्त में गुरु जी कहने लगे जब आप इन शांति वाले गुणों को अपनाओगे तो आपको शांति अपने आप ही प्राप्त हो जायेगी|

Tuesday 16 July 2013

श्री गुरु अर्जन देव जी - साखियाँ - गुरमुख और मनमुख

श्री गुरु अर्जन देव जी - साखियाँ



गुरमुख और मनमुख



एक दिन कुला, भुला और भागीरथ तीनों ही मिलकर गुरु अर्जन देव जी के पास आए| उन्होंने आकर प्रार्थना की कि हमें मौत से बहुत डर लगता है| आप हमें जन्म मरण के दुख से बचाए|

गुरु जी कहने लगे, आप गुरमुख बनकर मनमुखो वाले कर्म करने छोड़ दें| उन्होंने कहा महाराज! हमें यह समझाए कि गुरमुख और मनमुख में क्या अन्तर होता है| हमें इनके लक्षणों से अवगत कराए|

गुरमुख के लक्षण-

· गुरु के वचनों को याद रखना

· अपने उपर नेकी करने वालो की नेकी को याद रखना

· सबकी भलाई सोचना और चाहना

· किसी के काम में विघन नहीं डालना

· खोटे कर्मों का त्याग करना

· नेक कर्मों को ग्रहण करना

· गुरु के उपदेश को ग्रहण करके अपने आत्म स्वरुप को जानने वाला और अनेक में एक को देखने वाला गुरमुख होता है|


मनमुख के लक्षण-

· सबसे ईर्ष्या करनी

· किसी का भला होता देख दुखी होना

· अपनी इच्छा से काम करने

· कभी किसी का भला न सोचना

· जो नेकी करे उसकी बुराई करनी

· सबके बुरे में अपना भला समझना

· कथा कीर्तन ध्यान न लेना

· गुरु उपदेश को ध्यान से न सुनना

· पुण्य और स्नान से परहेज करना

· उपजीविका के लिए झूठ बोलना| 

गुरु जी के यह वचन सुनकर तीनों को संतुष्टि हुई| उन्होंने गुरमुखता के मार्ग पर प्रण कर लिया| फिर वह गुरु जी को माथा टेक कर अपने काम काज में लग गए|

Monday 15 July 2013

श्री गुरु अर्जन देव जी - श्री गुरु अर्जन देव जी गुरु गद्दी मिलना


श्री गुरु अर्जन देव जी - 
श्री गुरु अर्जन देव जी गुरु गद्दी मिलना






श्री गुरु अर्जन देव जी गुरु गद्दी मिलना

आप अपने ननिहाल घर में ही पोषित और जवान हुए| इतिहास में लिखा है एक दिन आप अपने नाना श्री गुरु अमर दास जी के पास खेल रहे थे तो गुरु नाना जी के पलंघ को आप पकड़कर खड़े हो गए| बीबी भानी जी आपको ऐसा देखकर पीछे हटाने लगी| गुरु जी अपनी सुपुत्री से कहने लगे बीबी! यह अब ही गद्दी लेना चाहता है मगर गद्दी इसे समय डालकर अपने पिताजी से ही मिलेगी| इसके पश्चात गुरु अमर दास जी ने अर्जन जी को पकड़कर प्यार किया और ऊपर उठाया| आपजी का भारी शरीर देखकर वचन किया जगत में यह भारी गुरु प्रकट होगा| बाणी का जहाज़ तैयार करेगा और जिसपर चढ़कर अनेक प्रेमियों का उद्धार होगा| इस प्रथाए आप जी का वरदान वचन प्रसिद्ध है-
"दोहिता बाणी का बोहिथा||"गुरु रामदास जी द्वारा श्री अर्जन देव जी को लाहौर भेजे हुए जब दो वर्ष बीत गए| पिता गुरु की तरफ से जब कोई बुलावा ना आया| तब आपने अपने ह्रदय की तडप को प्रकट करने के लिए गुरु पिता को चिट्ठी लिखी -
राग माझ || महला ५ चउपदे घरु १ ||
१. मेरा मनु लोचै गुर दरसन ताई || बिलाप करे चात्रिक की निआई || त्रिखा न उतरै संति न आवै बिनु दरसन संत पिआरे जीउ || १ || हउ घोली जीउ घोली घुमाई गुर दरसन संत पिआरे जीउ || १ || रहाउ ||

जब इस चिट्ठी का कोई उत्तर ना आया तो आपने दूसरी चिट्ठी लिखी -

२. तेरा मुखु सुहावा जीउ सहज धुनि बाणी || चिरु होआ देखे सारिंग पाणी || धंनु सु देसु जहा तूं वसिआ मेरे सजण मीत मुरारे जीउ || २ || हउ घोली हउ घोल घुमाई गुरु सजण मीत मुरारे जीउ || १ || रहाउ ||
जब इस चिट्ठी का भी उत्तर ना आया तब आपने तीसरी चिट्ठी लिखी - 

३. एक घड़ी न मिलते ता कलियुगु होता || हुणे कदि मिलीए प्रीअ तुधु भगवंता || मोहि रैणि न विहावै नीद न आवै बिनु देखे गुर दरबारे जीउ || ३ || हउ घोली जीउ घोलि घुमाई तिसु सचे गुर दरबारे जीउ || १ || रहाउ ||
गुरूजी ने जब आपकी यह सारी चिट्ठियाँ पड़ी तो गुरूजी ने बाबा बुड्डा जी को लाहौर भेजकर गुरु के चक बुला लिया| आप जी ने गुरु पिता को माथा टेका और मिलाप की खुशी में चौथा पद उच्चारण किया - 

४. भागु होआ गुरि संतु मिलाइिआ || प्रभु अबिनासी घर महि पाइिआ || सेवा करी पलु चसा न विछुड़ा जन नानक दास तुमारे जीउ || ४ || हउ घोली जीउ घोलि घुमाई जन नानक दास तुमारे जीउ || रहाउ || १ || ८ || (पन्ना ९३ - ९७)
गुरु पिता प्रथाए अति श्रधा और प्रेम प्रगट करने वाली यह मीठी बाणी सुनकर गुरु जी बहुत खुश हुए| उन्होंने आपको हर प्रकार से गद्दी के योग्य मानकर भाई बुड्डा जी और भाई गुरदास आदि सिखो से विचार करके आपने भाद्र सुदी एकम संवत् 1639 को सब संगत के सामने पांच पैसे और नारियल आपजी के आगे रखकर तीन परिक्रमा करके गुरु नानक जी की गद्दी को माथा टेक दिया| आपने सब सिख संगत को वचन किया कि आज से श्री अर्जन देव जी ही गुरुगद्दी के मालिक हैं| इनको आप हमारा ही रूप समझना और सदा इनकी आज्ञा में रहना| 

बाबा प्रिथी चंद जी का तीक्षण वोरोध और झगड़ा देखकर गुरु जी ने बाबा बुड्डा जी आदि बुद्धिमान सिखो को कहा कि हमारा अन्त समय नजदीक आ गया है और हम गोइंदवाल जाकर शांति से अपना शरीर त्यागना चाहते हैं| दूसरे दिन प्रातःकाल गुरु जी श्री अर्जन देव जी, बीबी भानी जी सहित कुछ सिख सेवको को साथ लेकर गोइंदवाल पहुँच गए| दूसरे दिन सुबह दीवान सजाकर संगत को वचन किया हमारा अन्तिम समय नजदीक आगया है और हमने गुरु गद्दी श्री अर्जन देव जी को दे दी है|

इस प्रकार गुरु राम दास जी ने 1639 विक्रमी मुताबिक 1 सितम्बर 1591 को गोइंदवाल जाकर गुरु पद का तिलक दे दिया और आप भाद्रव सुदी तीज को पांच तत्व का शरीर त्यागकर अपने आत्मिक स्वरूप में विलीन हो गए| हरबंस भट्ट अपने सवैये में लिखते हैं-
हरिबंस जगति जसु संचर्यउ सु कवणु कहैं स्री गुरु मुयउ||१|| 

देव पुरी महि गयउ आपि परमेसुर भायउ||

हरि सिंघासणु दीअउ सिरी गुरु तह बैठायउ||

(श्री गुरु ग्रंथ साहिब पन्ना १४०९)

Sunday 14 July 2013

श्री गुरु अर्जन देव जी जीवन-परिचय


श्री गुरु अर्जन देव जी जीवन-परिचय




Parkash Ustav (Birth date): April 15, 1563, at Goindwal in Distt. Amritsar, Punjab. 
प्रकाश उत्सव (जन्म की तारीख): 15 अप्रैल 1563, जिला में गोइंदवाल में. अमृतसर, पंजाब.

Father: Guru Ramdas ji
पिता: गुरु रामदास जी


Mother: Bibi Bhani ji
माँ: बीबी भानी जी


Sibling: Prithi chand, Mahadev (brothers)
सहोदर: प्रीथी चंद, महादेव (भाई)


Mahal (spouse): Mata Ganga ji D/o Krishen Chand, Meo village, Distt. Jullandhar
महल (पति या पत्नी): माता गंगा जी पुत्री कृष्ण चंद, मेव गांव, जिला. जालंधर


Sahibzaday (offspring): Hargobind ji
साहिबज़ादे (वंश): हरगोबिंद जी


Joti Jyot (ascension to heaven): May 30, 1606
ज्योति ज्योत (स्वर्ग करने के उदगम): 30 मई 1606


रामदासि गुरु जगत तारन कउ गुरु जोति सु अर्जन माहि धरी||

श्री गुरु अर्जन देव जी का जन्म 18 वैशाख 7 संवत 1620 को श्री गुरु राम दास जी के घर बीबी भानी जी की पवित्र कोख से गोइंदवाल अपने ननिहाल घर में हुआ|

आप अपने ननिहाल घर में ही पोषित और जवान हुए| इतिहास में लिखा है एक दिन आप अपने नाना श्री गुरु अमर दास जी के पास खेल रहे थे तो गुरु नाना जी के पलंघ को आप पकड़कर खड़े हो गए| बीबी भानी जी आपको ऐसा देखकर पीछे हटाने लगी| गुरु जी अपनी सुपुत्री से कहने लगे बीबी! यह अब ही गद्दी लेना चाहता है मगर गद्दी इसे समय डालकर अपने पिताजी से ही मिलेगी| इसके पश्चात गुरु अमर दास जी ने अर्जन जी को पकड़कर प्यार किया और ऊपर उठाया| आपजी का भारी शरीर देखकर वचन किया जगत में यह भारी गुरु प्रकट होगा| बाणी का जहाज़ तैयार करेगा और जिसपर चढ़कर अनेक प्रेमियों का उद्धार होगा| इस प्रथाए आप जी का वरदान वचन प्रसिद्ध है-
"दोहिता बाणी का बोहिथा||"



बीबी भानी जी ने जब पिता गुरु से यह बात सुनी तो बालक अर्जन जी को उठाया और पिता के चरणों पर माथा टेक दिया| इस तरह अर्जन देव जी ननिहाल घर में अपने मामों श्री मोहन जी और श्री मोहरी जी के घर में बच्चों के साथ खेलते और शिक्षा ग्रहण की|

जब आप की उम्र 16 वर्ष की हो गई तो 23 आषाढ़ संवत 1636 को आपकी शादी श्री कृष्ण चंद जी की सुपुत्री गंगा जी तहसील फिल्लोर के मऊ नामक स्थान पर हुई| आप जी की शादी के स्थान पर एक सुन्दर गुरुद्वारा बना हुआ है| इस गाँव में पानी की कमी हो गई थी| आपने एक कुआं खुदवाया जो आज भी उपलब्ध है|

Saturday 13 July 2013

श्री गुरु राम दास जी – ज्योति - ज्योत समाना

श्री गुरु राम दास जी – ज्योति - ज्योत समाना





श्री गुरु रामदास जी परिवार और सिख सेवको को यथा स्थान धैर्य व वाहिगुरु के हुकम में रहने की आज्ञा देकर भादव सुदी तीज संवत 1639 को आप शरीर त्यागकर परम ज्योति में विलीन हो गए|

इस प्रथाए अपने सवैइयों में हरबंस भट्ट ने लिखा है:

देवपुरी महि गयउ आपि परमेस्वर भायउ ||
हरि सिंघासणु दीअउ सिरी गुरु तह बैठायउ ||

काटे सु पाप तिनु नरहु के गुरु रामदास जिनु पाइियउ ||
छत्रु सिंघासणु पिरथमी गुरु अरजन कउ दे आइियउ ||२||



कुल आयु और गुरु गद्दी का समय (Shri Guru Ramdas Ji Total Age and Ascension to Heaven)


श्री गुरु रामदास जी कुल 46 साल 7 दिन शरीर करके संसार में रहें|

आप जी 6 साल 11 महीने 18 दिन गुरु गद्दी पर सुशोभित रहे|

Friday 12 July 2013

श्री गुरु राम दास जी – साखियाँ - पिंगले और रजनी का प्रसंग

श्री गुरु राम दास जी – साखियाँ - पिंगले और रजनी का प्रसंग



दुनीचंद क्षत्री जो कि पट्टी नगर में रहता था उसकी पांच बेटियां थी| सबसे छोटी प्रभु पर भरोसा करने वाली थी| एक दिन दुनीचंद ने अपनी बेटियों से पूछा कि आप किसका दिया हुआ खाती व पहनती हो| रजनी के बिना सबने यही कहा कि पिताजी हम आपका दिया ही खाती व पहनती हैं| पर रजनी ने कहा, पिताजी! मुझे भी और सबको देने वाला ही परमात्मा है| दुनीचंद ने कहा मैं देखता हूँ कि तेरा परमात्मा तुझे कैसे देता है| कुछ दिन रुक कर दुनीचंद ने रजनी का विवाह कुष्ट पिंगले के साथ कर दिया|

रजनी ने परमात्मा का हुकम मानकर और पति को परमेश्वर समझकर एक टोकरे में डालकर सिर पर उठा लिया और माँग कर अपने और पति का पेट पालने लगी| इस तरह मांगती हुई गुरु के चक आगई और दुःख भंजन बेरी के नीचे कच्चे सरोवर के पास अपने पति का टोकरा रखकर लंगर लेने चली गई| पिंगले ने देखा उस सरोवर में कौए नहाकर सफेद हो गए हैं| यह चमत्कार देखकर पिंगला भी अपने टोकरे से निकलकर रींग-रींग कर पानी में चला गया और लेट गया| अच्छी तरह लेटने के बाद उसका शरीर सुन्दर और आरोग हो गया| वह उठकर टोकरे के पास बैठ गया|

इतनी देर में उसकी पत्नी भी आ गई| उसने उस पुरुष से अपने पति के बारे में पूछा जिसे वह वहाँ छोड़ कर गई थी| उस पुरुष ने कहा कि मैं ही तुम्हारा पति हूँ जिसे तुम यहाँ छोड़ कर गई थी| उसने सारी बात अपनी पत्नी को बताई कि किस तरह कौए नहाकर सफेद हो गए और मैंने भी कौए के देखकर ऐसा ही किया और आरोग हो गया|

परन्तु रजनी को उसकी बात पर यकीन ना हुआ और वह दोनों ही गुरु रामदास जी के पास चले गए| गुरु जी ने पिंगले कि बात सुनकर कहा - येही तेरा पति है तुम भ्रम मत करो| यह तुम्हारे विश्वास, पतिव्रता और तीर्थ यात्रा की शक्ति का ही परिणाम है कि वह आरोग हो गया है| गुरु साहिब के वचनों पर यकीन करके वह दोनों पति-पत्नी सेवको के साथ मिलकर सेवा करने लगे| तभी उसे अपने पिता कि बात याद आई कि वह पिता को ठीक ही कहती थी कि परमात्मा ही सब कुछ देने और करने वाला है| इंसान के हाथ कुछ नहीं है| अपने सतगुरु की ऐसी मेहर देखकर दोनों ने अपना जीवन गुरु को अर्पण कर दिया|

Thursday 11 July 2013

श्री साई सच्चरित्र अध्याय 31

ॐ सांई राम


आप सभी को शिर्डी के साईं बाबा ग्रुप की और से साईं-वार की हार्दिक शुभ कामनाएं, हम प्रत्येक साईं-वार के दिन आप के समक्ष बाबा जी की जीवनी पर आधारित श्री साईं सच्चित्र का एक अध्याय प्रस्तुत करने के लिए श्री साईं जी से अनुमति चाहते है, हमें आशा है की हमारा यह कदम घर घर तक श्री साईं सच्चित्र का सन्देश पंहुचा कर हमें सुख और शान्ति का अनुभव करवाएगा |

किसी भी प्रकार की त्रुटी के लिए हम सर्वप्रथम श्री साईं चरणों में क्षमा याचना करते है...

श्री साई सच्चरित्र अध्याय 31

मुक्ति-दान
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1. सन्यासी विरजयानंद
2. बालाराम मानकर
3. नूलकर
4. मेघा और
5. बाबा के सम्मुख बाघ की मुक्त

इस अध्याय में हेमाडपंत बाबा के सामने कुछ भक्तों की मृत्यु तथा बाघ के प्राण-त्याग की कथा का वर्णन करते है ।

For Donation

For donation of Fund/ Food/ Clothes (New/ Used), for needy people specially leprosy patients' society and for the marriage of orphan girls, as they are totally depended on us.

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A/c. No - 200003513754 / IFSC - INDB0000036

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Gautam Budh Nagar, Uttar Pradesh. INDIA.

बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.