शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

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Monday 28 February 2011

ॐ सांई राम

ॐ सांई राम

ॐ शिरडी वासाय विधमहे सच्चिदानन्दाय धीमही
तन्नो साईं प्रचोदयात ॥
"जो आज साथ है उन पर निर्भर न रहो अपना लक्ष्य आप ही खोजो,
अकेले आये है अकेले ही जाएंगे"
"तुम अपने रोगों की चिंता मत करो मेरा चिंतन करो,
 मै तुम्हारे रोगों की चिंता करूंगा ...

Shirdi Ke Sai Baba Group (Regd.) Seeking Sponsreship for the modification of our website and launch of our Group's first Bhajan Mala Album : Main Balihari..................
Mere Sai...................
by : Mrs. Madhu Ji Anand..Have a look at her Live performance...
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Sai Sandhya Nimantran

ॐ सांई राम




Friday 25 February 2011

साईँ ही तो सर्वशक्तिमान है

ॐ सांई राम

अपने बच्चो की रक्षा का
साईँ को भी ध्यान है
श्रद्धा और सबूरी से साईँ
को पाना आसान है
हे मेरे भाई ,
साईँ को प्रणाम है
साईँ ही तो सर्वशक्तिमान है
धयान साईं का पल पल कर ले
होकर तू निष्काम
जन्म मृत्यु के चक्र से
बचकर पहुचे साईं धाम

Thursday 24 February 2011

केवल साईं ही परम और अटल सत्य है"!

ॐ सांई राम


ॐ शिरडी वासाय विधमहे सच्चिदानन्दाय धीमही तन्नो साईं प्रचोदयात ॥

"समस्त संसार एक भ्रम है परन्तु साईं साईं और केवल साईं ही परम और अटल सत्य है"!

Your happiness is your success, so let no one
take your happiness away from you. Protect
yourself from those who try to make you
unhappy. When your conscience is clear, when
you know you are doing right, you are not
afraid of anything. Be immaculate before
the tribunal of your conscience and
you
shall be happy and have the blessing of God.

Wednesday 23 February 2011

तूँ तो सब का सहारा है सांई

ॐ सांई राम


सुख के आने की उम्मीद पे सांई,
दुःख क्यों द्वार खटखटाता है,
यह तो मेरे कर्म है सांई,
मेरा मन क्यों तुझ को दोष लगाता है!!

तूँ तो सब का सहारा है सांई,
हर कोई तुझ को प्यारा है सांई,
तूँ तो अपने बंदों में फर्क न करता,
मेरा मन क्यों मुझको भटकाता है सांई,
ये तो मेरे कर्म है सांई....

तूँ तो दयावान है सांई,
तुझसे मिलता समाधान है सांई,
मैं यह जानूँ, देकर मुझको
दुःख तूँ आज़माता है!!!

तेरी कृपा सब पर होती सांई,
आँखें फिर क्यों दामन को भिगोती सांई,
तुझ को देकर दोष स्वयम् का,
मन ही मन वो पछताता है,
ये तो मेरे कर्म है सांई....

मैं ना चाहूँ इतना सुख सांई,
जिसमे हो तुझे भुलाने का दुःख सांई,
कभी-कभी ही लेकिन फिर भी
मुझ पे तूँ अपना हक तो जमाता है,
ये तो मेरे कर्म है सांई..

Sunday 20 February 2011

"श्रद्धा रख सब्र से काम ले अल्लाह भला करेगा."

ॐ सांई राम


 " बाबा ने कहा "श्रद्धा रख सब्र से काम ले अल्लाह भला करेगा." ये विशवास और आश्वासन हमेशा से भक्तो के लिए एक उजाले की किरण बनता रहा है. धुपखेडा गाँव के चाँद पाटिल से लेकर आज तक जिसने भी अपने मन में ये श्रीसाईं के इन दो शब्दों को बसा लिया उसका पूरी दुनिया तो क्या स्वयं प्रारब्ध या कहें की 'होनी' भी कुछ नहीं बिगाड़ सकती. सिर्फ एक अटल विश्वाश और अडिग यकीन आपको सारी मुसीबतों और तकलीफों के पार ले जा सकता है.


बहुत से भक्तो को बाबा ले श्रद्धा-सबूरी का मतलब आज भी स्पष्ट नहीं है. वास्तव में बाबा ने कहा था की अपने ईष्ट, अपने गुरु, अपने मालिक पर श्रद्धा रखो. ये विश्वास रखो की भवसागर को पार अगर कोई करा सकता है तो वो आपका ईष्ट, गुरु, और मालिक है. अपने मालिक की बातों को ध्यान से सुनो और उनका अक्षरक्ष पालन करो. बाबा को पता था की केवल किसी पर विश्वास रखना हो काफी नहीं है. विश्वास की डूबती-उतरती नाव का कोई भरोसा नहीं है इसीलिए बाबा ने इस पर सबूरी का लंगर डाल दिया था. किसी पर विश्वास करना है और इस हद तक करना है की कोई उस विश्वास को डिगा ना सके चाहे कितने ही साल और जनम लगें. जैसा की पहले हमने बताया दुःख दूर होना है और होगा मगर उस समय तक पहुँचने के लिए एक सहारा चाहिए और वो सहारा है श्रद्धा और सबूरी..........

Saturday 19 February 2011

भविष्य की आगाही महासमाधि से पहले

ॐ सांई राम
तुम लोगो ने मुझे मानव से माधव बना दिया है |प्रत्येक मानव में माधव के दर्शन करो . वही मेरे मिशन का उचित पुरस्कार है , वही मेरी सच्ची पूजा है----

दो वर्ष पूर्व, 1916 में, ही बाबा ने अपने निर्वाण के दिन का संकेत कर दिया था, परन्तु उस समय कोई भी समझ नहीं सका । घटना इस प्रकार है । विजया दशमी के दिन जब लोग सन्ध्या के समय सीमोल्लंघन से लौट रहे थे तो बाबा सहसा ही क्रोधित हो गये । सिर पर का कपड़ा, कफनी और लँगोटी निकालकर उन्होंने उसके टुकड़े-टुकड़े करके जलती हुई धूनी में फेंक दिये । बाबा के द्घारा आहुति प्राप्त कर धूनी द्घिगुणित प्रज्वलित होकर चमकने लगी और उससे भी कहीं अदिक बाबा के मुख-मंडल की कांति चमक रही थी । वे पूर्ण दिगम्बर खड़े थे और उनकी आँखें अंगारे के समान चमक रही थी । उन्होंने आवेश में आकर उच्च स्वर में कहा कि लोगो । यहाँ आओ,मुझे देखकर पूर्ण निश्चय कर लो कि मैं हिन्दू हूँ या मुसलमान । सभी भय से काँप रहे थे । किसी को भी उनके समीप जाने का साहस न हो रहा था । कुछ समय बीतने के पश्चात् उनके भक्त भागोजी शिन्दे, जो महारोग से पीड़ित थे, साहस कर बाबा के समीप गये और किसी प्रकार उन्होंने उन्हें लँगोटी बाँध दी और उनसे कहा कि बाबा । यह क्या बात है । देव आज दशहरा (सीमोल्लंघन) का त्योहार है । तब उन्होंने जमीन पर सटका पटकते हुए कहा कि यह मेरा सीमोल्लंघन है। लगभग 11 बजे तक भी उनका क्रोध शान्त न हुआ और भक्तों को चावड़ी जुलूस निकलने में सन्देह होने लगा। एक घण्टे के पश्चात् वे अपनी सहज स्थिति में आ गये और सदी की भांति पोशाक पहनकर चावड़ी जुलूस में सम्मिलित हो गये। इस घटना द्घारा बाबा ने इंगित किया कि जीवन-रेखा पार करने के लिये दशहरा ही उचित समय है। परन्तु उस समय किसी को भी उसका असली अर्थ समझ में न आया ।
बाबा ने और भी कई संकेत किये जैसे रामचन्द्र दादा पाटील
{तात्या कोई और नहीं बल्कि बैजाबाई जो बाबा की परम भक्त थीं, उनका ही पुत्र था। तात्या भी बाबा को मामा कहकर संबोधित करते थे।} की मृत्यु टालना - रामचन्द्र पाटील बहुत बीमार हो गये थे । उन्हें बहुत कष्ट हो रहा था । सब प्रकार के उपचार किये गये, परन्तु कोई लाभ न हुआ और जीवन से हताश होकर वे मृत्यु के अंतिम क्षणों की प्रतीक्षा करने लगे । तब एक दिन मध्याहृ रात्रि के समय बाबा अनायास ही उनके सिराहने प्रगट हुए। पाटील उनके चरणों से लिपट कर कहने लगे कि मैंने अपने जीवन की समस्त आशाये छोड़ दी है । अब कृपा कर मुझे इतना तो निश्चित बतलाइये कि मेरे प्राण अब कब निकलेंगे । दया-सिन्धु बाबा ने कहा कि घबराओ नहीं । तुम्हारी हुँण्डी वापस ले ली गई है और तुम शीघ्र ही स्वस्थ हो जाओगे । मुझे तो केवल तात्या का भय है कि सन् 1918 में विजया दशमी के दिन उसका देहान्त हो जायेगा । किन्तु यह भेद किसी से प्रगट न करना और न ही किसी को बतलाना । अन्यथा वह अधिक यभीत हो जायेगा । रामचन्द्र अब पूर्ण स्वस्थ हो गये, परन्तु वे तात्या के जीवन के लिये निराश हुए । उन्हें ज्ञात था कि बाबा के शब्द कभी असत्य नहीं निकल सकते और दो वर्ष के पश्चात ही तात्या इस संसर से विदा हो जायेगा । उन्होंने यह भेद बाला शिंपी के अतिरिक्त किसी से भी प्रगट न किया । केवल दो ही व्यक्ति – रामचन्द्र दादा और बाला शिंपी तात्या के जीवन के लिये चिन्ताग्रस्त और दुःखी थे । रामचन्द्र ने शैया त्याग दी और वे चलने-फिरने लगे । समय तेजी से व्यतीत होने लगा । शके 1840 का भाद्रपद समाप्त होकर आश्विन मास प्रारम्भ होने ही वाला था कि बाबा के वचन पूर्णतः सत्य निकले । तात्या बीमार पड़ गये और उन्होंने चारपाई पकड़ ली । उनकी स्थिति इतनी गंभीर हो गई कि अब वे बाबा के दर्शनों को भी जाने में असमर्थ हो गये । इधर बाबा भी ज्वर से पीड़ित थे । तात्या का पूर्ण विश्वास बाबा पर था और बाबा का भगवान श्री हरि पर, जो उनके संरक्षक थे । तात्या की स्थिति अब और अधिक चिन्ताजनक हो गई । वह हिलडुल भी न सकता था और सदैव बाबा का ही स्मरण किया करता था । इधर बाबा की भी स्थिति उत्तरोत्तर गंभीर होने लगी । बाबा द्घार बतलाया हुआ विजया-दमी का दिन भी निकट आ गया । तब रामचन्द्र दादा और बाला शिंपीबहुत घबरा गये । उनके शरीर काँप रहे थे, पसीने की धारायें प्रवाहित हो रही थी, कि अब तात्या का अन्तिम साथ है । जैसे ही विजया-दशमी का दिन आया, तात्या की नाड़ी की गति मन्द होने लगी और उसकी मृत्यु सन्निकट दिखलाई देने लगी । उसी समय एक विचित्र घटना घटी । तात्या की मृत्यु टल गई और उसके प्राण बच गये, परन्तु उसके स्थान पर बाबा स्वयं प्रस्थान कर गये और ऐसा प्रतीत हुआ, जैसे कि परस्पर हस्तान्तरण हो गया हो । सभी लोग कहने लगे कि बाबा ने तात्या के लिये प्राण त्यागे । ऐसा उन्होंने क्यों किया, यह वे ही जाने, क्योंकि यह बात हमारी बुद्घि के बाहर की है । ऐसी भी प्रतीत होता है कि बाबा ने अपने अन्तिम काल का संकेत तात्या का नाम लेकर ही किया था ।


{जब बाबा ने तात्या को सात्वना दी थी ही चिंता न करो तुम मरना नहीं चाहते न...मैंने तुम्हारी मृत्यु को टाल दिया है अब तुम्हारी जगह कोइ और जाएगा ...तभी माधवराव के मन में यह चिंता थी कि यह " कोइ और " तात्या के स्थान पर कही बाबा ही न हो.....}
ऐसा ही एक और संकेत था , गोपाल राव और बूटी को एक सा
स्वप्न आया और बाबा ने स्वप्न में दोनों को कहा कि जल्दी वाड़ा तैयार करा दो | और हम दशहरा के दिन उस भवन का उदघाटन करेगे |फिर ये दोनों माधव राव के पास गए और फिर बाबा के पास ... फिर बाबा से माधव राव ने पूछा कि आप चाहते है कि बूटी वाड़ा बनवाये , ठीक है न ??



बाबा ने कहा तुरंत ही, आज ही काम शुरू कर दो, और इसे विजयदशमी के दिन तक पूर्ण कर दो| बूटी ने पूछा कि उसके भीतर हम किसका मंदिर बनाएगे ?

बाबा बोले अरे किसी भी देवता - किसी भी भगवान का मंदिर . हम सब भी तो स्वयं ही भगवान है|उन्ही के असितत्व के अंश है| हम सब उसके भीतर बैठेगे और गप्पे मारेगे . हम भजन गायेगे, हम आनन्द करेगे, हम सब वहां जी भर कर उचल कूद करेगे, भगवान तो केवल मंदिर को सजाने के लिए ही होते है...


जब वाड़ा बन के तैयार हो गया तो बाबा ने शामा से कहा कि कितना सुन्दर है न ? मैं स्वयं यहाँ विश्राम करने के लिए आना चाहता हूँ|

तब बाबा के कहाँ अरे नहीं मैं तो बस ऐसे ही बकवास करता हूँ| तुम लोगो ने मुझे मानव से माधव बना दिया है,यह तुम लोगो की महानता है,यहाँ मुझे सब कुछ प्राप्त हुआ लेकिन ऐसे भाव समस्त प्राणियों के प्रति रखों , प्रत्येक मानव में माधव के दर्शन करो| वही मेरे मिशन का उचित पुरस्कार है , वही मेरी सच्ची पूजा है ....

Friday 18 February 2011

गुरुवार को साईं बाबा की पूजा

ॐ सांई राम




साईं बाबा एक ऐसे फकीर हैं जिन्हें हर धर्म के लोग बड़ी श्रद्धा से पूजते हैं। सभी जाति और धर्म इनके प्रति पूर्ण विश्वास रखते हैं। इनकी आराधना किसी भी विशेष मुहूर्त या वार को किया जा सकती है परंतु गुरुवार को इनकी पूजा का विशेष महत्व माना गया है।

गुरुवार को इनकी आराधना का इतना महत्व क्यों हैं? इस संबंध में यही तथ्य है कि गुरुवार गुरु का दिन माना जाता है। सभी धर्मों में गुरु का खास स्थान माना जाता है, गुरु ही हमें आदर्श जीवन जीने के सूत्र बताता है। गुरु ही सही राह पर चलने की प्रेरणा देता है। साईं बाबा ने हमेशा सभी को आदर्श और उच्च जीवन जीने की प्रेरणा दी है। इसी वजह से इन्हें बड़ी संख्या श्रद्धालु अपना गुरु मानते हैं। साथ ही ऐसा माना जाता है कि इनकी आराधना से जल्द ही हमारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है। साईं के मंदिर में सभी धर्मों के लोगों के लिए समभाव रखा जाता है। गुरुवार गुरु का दिन होने की वजह से साईं बाबा को गुरु मानने वाले सभी भक्त इस दिन बाबा के मंदिर जाते हैं।

साईं बाबा के मंत्र सबका मालिक एक यही बताता है कि परमात्मा एक है और वही हम सभी का पालन-पोषण करता है। इसी मंत्र की वजह से वे सर्वधर्म के लोगों के लिए भगवान और गुरु के समान ही हैं।

Source : Sai-Ka-Aangan

Wednesday 16 February 2011

Aaj Ka Sai Sandesh

ॐ सांई राम

"Never hurt feelings of your parents. Your life will be
peaceful n happy when u make ur parents happy" so,my humble request, pleaseforget the bad past, if any, & make your parents happy with your tender n gentle care from now onwards, or u"ll miss them when they are no more.

"पहाड़ से गिरने की अपेक्षा किसी की नजरों से गिरना अधिक खतरनाक है" !
निस दिन जपो श्री साईं नाम महामंत्र ......
ॐ शिरडी वासाय विधमहे सच्चिदानन्दाय धीमही तन्नो साईं प्रचोदयात ॥
ॐ सांई राम
 
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Friday 11 February 2011

गीता सार

ॐ सांई राम

गीता सार

जो हुआ अच्छा हुआ

जो हो रहा है अच्छा हो रहा है

जो होगा वो भी अच्छा होगा

तुम्हारा क्या गया जो तुम रोते हो

तुम क्या लाये थे जो तुमने खो दिया

तुमने क्या पैदा किया था जो नष्ट हो गया

तुमने जो लिया यही से लिया

जो दिया यही पर दिया

जो आज तुम्हारा है

कल किसी और का था

और कल किसी और का होगा

Thursday 10 February 2011

ॐ सांई राम

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हाथ न आया सिवाय पश्चाताप के।

ॐ सांई राम

थोङा सा सम्मान मिला,पागल हो गए।
थोङा सा धन मिला,बेकाबू हो चले।
थोङा सा ज्ञान मिला,उपदेश की भाषा सीख ली।
थोङा सा यश मिला,दुनिया पर हंसने लगे।
थोङा सा रूप मिला,दर्पण को तोङ डाला।
थोङा सा अधिकार मिला,दूसरों को तबाह कर दिया।
इस प्रकार तमाम उम्र छलनी से पानी भरते रहे।
अपनी समझ से बहुत बङा काम करते रहे।
अंत में कुछ भी हाथ न आया सिवाय पश्चाताप के।

जय साईं राम

Wednesday 9 February 2011

मनुष्य के तीन मूल्य...

ॐ सांई राम

मनुष्य के तीन मूल्य...

 एक खिलौने वाला तीन बहुत ही सुंदर और आकर्षक गुड़िया बनाकर राजा के पास बेचने के लिए गया। तीनों गुड़िया देखने में एक ही जैसी थी, कोई अन्तर मालूम नही चलता था, पर उनके दाम अलग-अलग थे।

खिलौने वाले राजा से कहा, एक के दाम एक सौ, दूसरे के चार सौ, और तीसरे के पूरे पन्द्रह सौ। राजा सोच में पड़ गया कि आख़िर तीनों गुडिया तों देखने में एक ही जैसी है तों फिर दाम अलग-अलग क्यों?  राजा ने उस खिलौने वाले से कहा की तुम अभी इन सबको यही छोड़कर जाओ, पैसे तुम्हें कल मिलेगे। वह जब चला गया तों राजा इसकी चर्चा अपने मंत्रियों से की,  पर यह बात किसी के समझ में नही आ रही थी। पर उसके मंत्रिपरिषद में एक मंत्री बहुत ही समझदार था। उसने राजा से उन गुड़ियो को अपने घर ले जाने की ईजाजत मांगी, और कहा की कल वो इस रहस्य को सबके सामने सुलझा देगा। राजा ने उसे गुडियों को घर ले जाने की अनुमति दे दी।

मंत्री के घर पर उसकी पत्नी और बेटी थी, दोनों ही इतने गुणी और समझदार थीं की उन के चर्चे शहर में भी होते रहते थे ।

तीनो मिलकर रातभर उन गुडियों को जांचते और परखते रहे और आखिरकार उन लोगों ने रहस्य का पता लगा ही लिया, सुबह मंत्री राजा के पास पहुँचा और उसने राजा को बताया कि उसने वो रहस्य खोज लिया है,  तों राजा ने मंत्रिमंडल की बैठक बुलाई और सबके सामने उसे बताने को कहा।

मंत्री ने कहा, "पहली वाली गुड़िया (सौ वाली ) के एक कान में जब कोई सीक डालो तों वह सीधे दूसरे कान से निकल जाती थी, दूसरी वाली (चार सौ ) के कान में जब कोई सीक डालो तों वह कान से न निकल कर मुख से निकल जाती थी, और जब तीसरी वाली (पन्द्रह सौ) के कान में जब कोई सीक डाली जाती थी तों वह न मुख से निकलती थी और न ही कान से बल्कि वह उसके पेट में जा कर अटक जाती थी।"

मंत्री ने राजा से कहा, जो मनुष्य सहनशील एवं गंभीर होते है, वह मनुष्य मूल्यवान होता है,  जो एक कान से सुने और मुख से तुरंत प्रचारित करने लगे वह उससे कम दर्जे का होता है, पर वह व्यक्ति जो किसी भी बात को एक कान से सुनकर हमेशा दूसरे कान से निकल देता है वह बहुत ही घटिया इन्सान होता है,  ऐसे लोगो का मूल्य अधिक नही होता। अब राजा को सारी बात समझ में आ गयी थी। उसने खुश होकर मंत्री को पुरस्कार भी दिया।

गौरतलब : कोई भी बात सुनकर अपने भीतर ही सीमित रखना समझदारी है, किसी बात को हँसी में उड़ा देने वाले लोग या चुगली करने वाले लोगों की समाज में क़द्र नही होता।

Tuesday 8 February 2011

हर एक की कहीं न कहीं उपयोगिता है।

ॐ सांई राम

उपयोगिता ||
एक राजा था। उसने आज्ञा दी कि संसार में इस बात की खोज की जाय कि कौन से जीव-जंतु निरुपयोगी हैं। बहुत दिनों तक खोज बीन करने के बाद उसे जानकारी मिली कि संसार में दो जीव जंगली मक्खी और मकड़ी बिल्कुल बेकार हैं। राजा ने सोचा, क्यों न जंगली मक्खियों और मकड़ियों को ख़त्म कर दिया जाए।

इसी बीच उस राजा पर एक अन्य शक्तिशाली राजा ने आक्रमण कर दिया, जिसमें राजा हार गया और जान बचाने के लिए राजपाट छोड़ कर जंगल में चला गया। शत्रु के सैनिक उसका पीछा करने लगे। काफ़ी दौड़-भाग के बाद राजा ने अपनी जान बचाई और थक कर एक पेड़ के नीचे सो गया। तभी एक जंगली मक्खी ने उसकी नाक पर डंक मारा जिससे राजा की नींद खुल गई। उसे ख़याल आया कि खुले में ऐसे सोना सुरक्षित नहीं और वह एक गुफ़ा में जा छिपा। राजा के गुफ़ा में जाने के बाद मकड़ियों ने गुफ़ा के द्वार पर जाला बुन दिया।

शत्रु के सैनिक उसे ढूँढ ही रहे थे। जब वे गुफ़ा के पास पहुँचे तो द्वार पर घना जाला देख कर आपस में कहने लगे, "अरे! चलो आगे। इस गुफ़ा में वह आया होता तो द्वार पर बना यह जाला क्या नष्ट न हो जाता।"

गुफ़ा में छिपा बैठा राजा ये बातें सुन रहा था। शत्रु के सैनिक आगे निकल गए। उस समय राजा की समझ में यह बात आई कि संसार में कोई भी प्राणी या चीज़ बेकार नहीं। अगर जंगली मक्खी और मकड़ी न होतीं तो उसकी जान न बच पाती।
इस संसार में कोई भी चीज़ या प्राणी बेकार नहीं। हर एक की कहीं न कहीं उपयोगिता है।

जय सांई राम

Monday 7 February 2011

मो को कहां तू ढूंढे बंदे

ॐ सांई राम

मो को कहां तू ढूंढे बंदे

एक रानी नहाकर अपने महल की छत पर बाल सुखाने के लिए गई। उसके गले में एक हीरों का हार था, जिसे उतार कर वहीं आले पर रख दिया और बाल संवारने लगी। इतने में एक कौवा आया। उसने देखा कि कोई चमकीली चीज है, तो उसे लेकर उड़ गया। एक पेड़ पर बैठ कर उसे खाने की कोशिश की, पर खा न सका। कठोर हीरों पर मारते-मारते चोंच दुखने लगी। अंतत: हार को उसी पेड़ पर लटकता छोड़ कर वह उड़ गया।

जब रानी के बाल सूख गए तो उसका ध्यान अपने हार पर गया, पर वह तो वहां था ही नहीं। इधर-उधर ढूंढा, परन्तु हार गायब। रोती-धोती वह राजा के पास पहुंची, बोली कि हार चोरी हो गई है, उसका पता लगाइए। राजा ने कहा, चिंता क्यों करती हो, दूसरा बनवा देंगे। लेकिन रानी मानी नहीं, उसे उसी हार की रट थी। कहने लगी, नहीं मुझे तो वही हार चाहिए। अब सब ढूंढने लगे, पर किसी को हार मिले ही नहीं।

राजा ने कोतवाल को कहा, मुझ को वह गायब हुआ हार लाकर दो। कोतवाल बड़ा परेशान, कहां मिलेगा? सिपाही, प्रजा, कोतवाल- सब खोजने में लग गए। राजा ने ऐलान किया, जो कोई हार लाकर मुझे देगा, उसको मैं आधा राज्य पुरस्कार में दे दूंगा। अब तो होड़ लग गई प्रजा में। सभी लोग हार ढूंढने लगे आधा राज्य पाने के लालच में। तो ढूंढते-ढूंढते अचानक वह हार किसी को एक गंदे नाले में दिखा। हार तो दिखाई दे रहा था, पर उसमें से बदबू आ रही थी। पानी काला था। परन्तु एक सिपाही कूदा। इधर-उधर बहुत हाथ मारा, पर कुछ नहीं मिला। पता नहीं कहां गायब हो गया। फिर कोतवाल ने देखा, तो वह भी कूद गया। दो को कूदते देखा तो कुछ उत्साही प्रजाजन भी कूद गए। फिर मंत्री कूदा।

तो इस तरह उस नाले में भीड़ लग गई। लोग आते रहे और अपने कपडे़ निकाल-निकाल कर कूदते रहे। लेकिन हार मिला किसी को नहीं- कोई भी कूदता, तो वह गायब हो जाता। जब कुछ नहीं मिलता, तो वह निकल कर दूसरी तरफ खड़ा हो जाता। सारे शरीर पर बदबूदार गंदगी, भीगे हुए खडे़ हैं। दूसरी ओर दूसरा तमाशा, बडे़-बडे़ जाने-माने ज्ञानी, मंत्री सब में होड़ लगी है, मैं जाऊंगा पहले, नहीं मैं तेरा सुपीरियर हूं, मैं जाऊंगा पहले हार लाने के लिए।

इतने में राजा को खबर लगी। उसने सोचा, क्यों न मैं ही कूद जाऊं उसमें? आधे राज्य से हाथ तो नहीं धोना पडे़गा। तो राजा भी कूद गया। इतने में एक संत गुजरे उधर से। उन्होंने देखा तो हंसने लगे, यह क्या तमाशा है? राजा, प्रजा, मंत्री, सिपाही -सब कीचड़ में लथपथ, क्यों कूद रहे हो इसमें?

लोगों ने कहा, महाराज! बात यह है कि रानी का हार चोरी हो गई है। वहां नाले में दिखाई दे रहा है। लेकिन जैसे ही लोग कूदते हैं तो वह गायब हो जाता है। किसी के हाथ नहीं आता।

संत हंसने लगे, भाई! किसी ने ऊपर भी देखा? ऊपर देखो, वह टहनी पर लटका हुआ है। नीचे जो तुम देख रहे हो, वह तो उसकी परछाई है।

इस कहानी का क्या मतलब हुआ? जिस चीज की हम को जरूरत है, जिस परमात्मा को हम पाना चाहते हैं, जिसके लिए हमारा हृदय व्याकुल होता है -वह सुख शांति और आनन्द रूपी हार क्षणिक सुखों के रूप में परछाई की तरह दिखाई देता है और यह महसूस होता है कि इस को हम पूरा कर लेंगे। अगर हमारी यह इच्छा पूरी हो जाएगी तो हमें शांति मिल जाएगी, हम सुखी हो जाएंगे। परन्तु जब हम उसमें कूदते हैं, तो वह सुख और शांति प्राप्त नहीं हो पाती।

इसलिए सभी संत-महात्मा हमें यही संदेश देते हैं कि वह शांति, सुख और आनन्द रूपी हीरों का हार, जिसे हम संसार में परछाई की तरह पाने की कोशिश कर रहे हैं, वह हमारे अंदर ही मिलेगा, बाहर नहीं।

 
अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

Sunday 6 February 2011

अन्तिम शिक्षा....

ॐ सांई राम

बुद्ध की अन्तिम शिक्षा....

भगवान् बुद्ध अपने शरीर की आखिरी साँसे गिन रहे थे। उनके सारे शिष्य और अनुयायी उनके चारों ओर एकत्रित थे। ऐसे में उन्होनें भगवान् से अपना आखिरी संदेश देने का अनुरोध किया।

बुद्ध अपने सर्वश्रेष्ठ शिष्य की तरफ़ मुख करके बोले: "मेरे मुख में देखो, क्या दिख रहा है"?

बुद्ध के खुले मुख की तरफ़ देख कर वह बोला: "भगवन, इसमें एक जीभ दिखाई दे रही है"

बुद्ध बोले: "बहुत अच्छा, लेकिन कोई दांत भी हैं क्या?"

शिष्य ने बुद्ध के मुख के और पास जाकर देखा, और बोला: "नहीं भगवन, एक भी दांत नहीं है"

बुद्ध बोले: "दांत कठोर होते हैं, इसलिए टूट जाते हैं। जीभ नरम होती है, इसलिए बनी रहती है। अपने शब्द और आचरण नरम रखो, तुम भी बने रहोगे"

यह कहकर बुद्ध ने अपने शरीर का त्याग कर दिया।

नरमी में ही शान्ति और विकास है। इसी में सबकी भलाई है। 

Saturday 5 February 2011

वास्तविक सुख

ॐ सांई राम

वास्तविक सुख 
 एक बार एक सेठ की राह चलते एक साधु से मुलाकात हो गई। चलते-चलते सफर को आसान बनाने के लिए दोनों सुख और अध्यात्म पर चर्चा करने लगे। सेठ ने कहा, 'मेरे पास जीवन में उपभोग के सभी साधन हैं पर सुख नहीं है।'

साधु ने मुस्कराकर पूछा, 'कैसा सुख चाहते हो।'

सेठ ने कहा, 'वास्तविक सुख। यदि कोई मुझे वह सुख प्रदान कर दे तो मैं इसकी कीमत भी दे सकता हूं।' साधु ने फिर पूछा, 'क्या कीमत दोगे? सेठ ने कहा, 'मेरे पास बहुत धन है। मैं उसका एक बड़ा हिस्सा इसके बदले में दे सकता हूं। लेकिन मुझे वास्तविक सुख चाहिए।'

साधु ने देखा कि सेठ के हाथों में एक पोटली है जिसे वह बार-बार अपने और नजदीक समेटता जाता था। अचानक साधु ने पोटली पर झपट्टा मारा और भाग खड़ा हुआ। सेठ के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी। पोटली में कीमती रत्न थे। सेठ चिल्लाता हुआ साधु के पीछे लपका लेकिन हट्टे-कट्टे साधु का मुकाबला वह थुलथुल सेठ कैसे करता। कुछ देर दौड़ने के बाद वह थककर बैठ गया।

वह अपने बहुमूल्य रत्नों के ऐसे अचानक हाथ से निकल जाने से बेहद दुखी था। तभी अचानक उसके हाथों पर रत्नों की वही पोटली गिरी। सेठ ने तुरंत उसे खोलकर देखा तो सारे रत्नों को सुरक्षित पाया। उसने पोटली को हृदय से लगा लिया। तभी उसे साधु की आवाज सुनाई दी जो उसके पीछे खड़ा था। साधु ने कहा, 'सेठ, सुख मिला क्या?' सेठ ने कहा, 'हां महाराज, बहुत सुख मिला। इस पोटली के यूं अचानक चले जाने से मैं बहुत दुखी था मगर अब मुझे बहुत सुख है।'

साधु ने कहा, 'सेठ, ये रत्न तो तुम्हारे पास पहले भी थे पर तब भी तुम सुख की तलाश में थे। बस, इनके जरा दूर होने से ही तुम दुखी हो गए यानी तुम्हारा सुख इस धन से जुड़ा है। यह फिर अलग होगा तो तुम फिर दुखी हो जाओगे। यह सुख नकली है। अगर वास्तविक सुख की तलाश है तो तुम्हें उसकी वास्तविक कीमत भी देनी होगी। जो यह नकली धन नहीं है बल्कि वह है सेवा और त्याग।'

Friday 4 February 2011

Sabka Malik Ek

ॐ सांई राम

Sabka Malik Ek
उसके यहां कोई भेदभाव नहीं

कुछ दिनों पहले उड़ीसा के पुरी स्थित भगवान जगन्नाथ के मंदिर में एक गैर हिंदू चला गया। उसके 'अनधिकृत प्रवेश' के कारण भगवान को स्नान कराया गया और मंदिर की साफ-सफाई हुई। कितनी बेतुकी बात है? जो भगवान सबको पवित्र करता है, वही अपवित्र हो गया? किसी पेड़ की छाया में जब कोई हिंदू या मुसलमान खड़ा होकर सुस्ताना चाहता है, तो क्या पेड़ उसकी जाति देख कर अपनी छाया देता है? वह तो कभी नहीं कहता कि तुम मुसलमान हो, तुम सिख हो, तुम हिंदू हो, तुम ईसाई हो, तुम बुद्ध हो। भगवान क्या पेड़ से भी गए-बीते हो गए। क्या उनमें पेड़ जैसी उदारता भी नहीं?

किसी व्यक्ति के छूने से पेड़ पवित्र या अपवित्र नहीं होता। उसे कुदरत ने पैदा किया है। परंतु पूजा स्थल मनुष्य ने बनाए हैं। जो मनुष्य ने बनाया है, उसमें दीवारें हैं, उसमें छूत-अछूत का भेद है। वह कहता कि फलाँ आ सकता है, फलाँ नहीं आ सकता। नाम वह भगवान की लेता है पर हुक्म अपनी चलाता है, तुम आ सकते हो, पर तुम नहीं आ सकते।

मनुष्य का बनाया हुआ है यह भेद-भाव, बनाने वाले ने तो कोई अंतर नहीं रखा। मनुष्य के बनाए नलके या कुएँ में छुआ छूता होता है, कहीं वह ऊँची जात वालों की होती है, कहीं वह नीची जात वालों की होती है। लेकिन भगवान की बनाई हुई जो नदी है वह किसी से छुआछूत नहीं करती। उसमें कोई भी जाकर पानी पी सकता है। हमारा समाज ही सिखाता है, आपस में बैर रखना। धर्म व ईश्वर की तरफ से ऐसा कोई विधान नहीं है। जो अज्ञानी है, वह चाहे जगन्नाथ पुरी में बैठे या वाराणसी में, यह तथ्य समझ नहीं पा रहा।

एक समय तीन ब्राह्माण गंगा स्नान करने गए, परंतु उके पास लोटा नहीं था। वहीं पर कबीर भी स्नान कर रहे थे। पंडितों की परेशानी भांपकर कबीर ने कहा, मेरा यह लोटा है इसे ले जाओ। वे ब्राह्माण कबीर को अछूत मानते थे, इसलिए लोटा लेने को तैयार नहीं हुए। कबीर ने उसे मिट्टी से तीन बार घिस कर उसे साफ करके दिया, तब ब्राह्माणों ने लोटा ले लिया और गंगा स्नान के लिए जाने लगे। कबीर ने पीछे से आवाज लगाई, 'लेकिन पंडितों, आप लोगों से पहले मैं इस गंगा में डुबकी लगा चुका हूँ, अब उसे मिट्टी से कैसे साफ करूँ?' तीनों को बात समझ में आ गई, वे बड़े शर्मसार हुए और क्षमा मांगने लगे।

आदमी-आदमी के बीच सचमुच में कोई अंतर नहीं है। जब तक सांस आती है, हम जीवित हैं और जब अंतिम सांस जाएगी, तब सबका एक ही हाल होना है। चाहे दफनाओ, जलाओ, चाहे पेड़ पर लटका कर चीलों को खिलाओ, कोई फर्क नहीं पड़ता। क्या चीज है वह जिसके कारण हम जीवित हैं? उस शक्ति को जानना, उसका अनुभव करना -सारे भेदभाव की दीवारों को ध्वस्त कर देता है। मनुष्य-मनुष्य में भेदभाव करने वाले धर्म के ठेकेदार नहीं समझते कि किसी भी मनुष्य के मंदिर प्रवेश से मंदिर अपवित्र नहीं होता और न ही कोई नलका या कुएँ का पानी पीने से अपवित्र होता है। कहा है, 'हित अनहित पशु पक्षी हि जाना, मानुष तन गुण ज्ञान निधाना।' अपना भला-बुरा तो पशु- पक्षी भी अच्छी तरह से जानते हैं, लेकिन मनुष्य में और भी कई विशेषताएँ हैं, दूसरे प्राणियों की तुलना में तो वह ज्ञान का खजाना है।

अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

Thursday 3 February 2011

Shree Sai-Samadhi Ka Phool....

ॐ सांई राम

मानवीय जीवन में ज्ञान का दीपक जलाते हैं सदगुरू

ॐ सांई राम

मानवीय जीवन में ज्ञान का दीपक जलाते हैं सदगुरू

जिस प्रकार से अंधकार को मिटाने के लिए उसके पीछे लाठी लेकर नहीं भागना पड़ता बल्कि उसे दूर करने के लिए दीपक दीया या बिजली का बल्ब जलाया जाता है, रोशनी करना जरूरी है वैसे ही सदगुरू अपनी शरण में आने वाले के मन में व्याप्त अज्ञानता रूपी अंधकार को दूर करने के लिए ज्ञान का दीपक जला देते हैं।

जैसे प्रकाश के जलते ही अंधकार स्वत: नष्ट होने लगता है वैसे ही सदगुरु की संगत से अंधकार खत्म होने लगता है और मनुष्य की दृष्टि ही बदल जाती है। गुरु के आशीर्वाद से नाशवान पदार्थो के प्रति अरुचि होने लगती हैं और सद पथ पर चलने की प्रेरणा मिलती है जिससे परमात्मा का साक्षात्कार सुलभ हो जाता है इसलिए मनुष्य के लिए जीवन में सच्चे गुरु का चुनाव आवश्यक है। गुरु की संगत से प्रकाश का मार्ग प्रशस्त होता है और प्रभु की प्राप्ति का रास्ता सुगम हो जाता हैं। बाबा को पाने के लिए पहले मनुष्य को अपना मन निर्मल करते हुए अहम व लोभ का त्याग करना होगा। जो मनुष्य जीवन भर मोह जाल में फंस कर प्रभु का नाम लेना भी भूल जाते है उन्हें कभी सच्ची मानसिक शांति नहीं मिलती और जीवन में हर खुशी अधूरी ही रह जाती हैं। सच्चा गुरु वही है जो अपने शिष्य को सही मार्ग दिखलाए और उसे प्रभु प्राप्ति व मानसिक शांति पाने का रास्ता बताते हुए उसका उद्धार करे।

जो मनुष्य अहंकार का त्याग नहीं करता व मैं की भावना में ही उलझा रहता है वह कभी बाबा का प्रिय पात्र नहीं बन सकता। हर प्राणी को समान समझते हुए उससे ऐसा व्यवहार करना चाहिए जैसा आप उससे अपेक्षा रखते हैं।

हर मनुष्य में परोपकार की भावना होनी चाहिए। साथ ही नेकी कर दरिया में डाल वाली मानसिकता भी होनी चाहिए। मनुष्य को कभी भी किसी पर उपकार करके उसका एहसान नहीं जताना चाहिए। किसी पर एहसान करके जताने से अच्छा है कि एहसान किया ही न जाए।

Wednesday 2 February 2011

धर्म तोड़ना नहीं, जोड़ना सिखाता है

ॐ सांई राम



धर्म तोड़ना नहीं, जोड़ना सिखाता है:

समभाव में ही धर्म है और विषमता में हमेशा अधर्म होता है। मानव कभी खेत में पैदा नहीं होता है। वह तो मानव की आत्मा में पैदा होता है। हमें यह विश्व बंधुता व मानव से आपस में प्यार करना सिखाता है।

धर्म हमें कभी लड़ना, भिड़ना, झगड़ना आपस में किसी प्रकार की हिंसा करना नहीं सिखाता है। मानव हर समय माला जाप, मंदिरों में घंटे बजाकर व नारे लगाकर अपने को धार्मिक दिखाता है। सही मायने में वह धर्म नहीं है। आज धर्म को संप्रदायों में बाट दिया है। भगवान के नाम पर लड़ना, मजहब के नाम पर लड़ना इंसान की प्रवृत्ति बन गई है। धर्म के नाम पर हमारे विचारों में भेद तो हो सकते हैं, लेकिन हमारे मनों के अंदर भेद नहीं होना चाहिए। धर्म हमारे घरों के अंदर क्लेश नहीं सिखाता, हमें भाई-भाई को अलग होना नहीं सिखाता। आज हम भगवान को भी बांट रहे हैं। यह मेरा भगवान है यह तेरा भगवान है।

जैसे संतरा बाहर से एक दिखाई देता अंदर से अलग-अलग होता है। उसी प्रकार हमें भी बनना है। हमें कैंची की तरह नहीं जो हमेशा काटने का काम करती है, सूई की तरह बनना है जो हमेशा दूर हुए को मिलाती है। धर्म गुरु हमारे अंदर से अंधकार को दूर करते हैं। मुस्लिम जायरीन हज करते समय सफेद कपड़े पहनते हैं व नंगे पैर चलते हैं, सिर में खुजाते तक नहीं कहीं कोई जूं न मर जाए। हमें अपने प्राणों की बलि देकर भी सत्य व धर्म की रक्षा करनी चाहिए। धर्म संगठन में नहीं है। संगठन तो चार का भी होता है। आतंकवादियों का भी होता है। हमें नेक बनना है। बिनोबा जी ने कहा था कि अगर इंसान अपने धर्म में दृढ़ हो व दूसरों के धर्म में सम्मान की भावना हो और अधर्म से घृणा करता हो वह सही मायने में धार्मिक है। कोई भी धर्म हमें किसी का दिल तोड़ना नहीं जोड़ना सिखाता है।

Tuesday 1 February 2011

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ॐ सांई राम

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सत्संग से प्रभु प्राप्ति सुगम

ॐ सांई राम

सत्संग से प्रभु प्राप्ति सुगम

जिस प्रकार गन्ने को धरती से उगाकर उससे रस निकालकर मीठा तैयार किया जाता है और सूर्य के उदय होने से अंधकार मिट जाता है उसी प्रकार सत्संग में आने से मनुष्य को प्रभु मिलन का रास्ता दिख जाता है और उसके जीवन का अंधकार मिट जाता है। सत्संग में आने से मानव का मन साफ हो जाता है और मानव पुण्य करने को प्रेरित होता है जिससे उसे प्रभु प्राप्ति का मार्ग सुगमता से प्राप्त होता है।

मानव द्वारा किए गए पुण्य कर्म ही उसे जीवन की दुश्वारियों से बचाते हैं और जीवन के ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर चलने में सहायक होते हैं। जीवन में असावधानी की हालत में व विपरीत परिस्थितियों में यही पुण्य कर्म मनुष्य की सहायता करते हैं। अगर मनुष्य का जीवन में कोई सच्चा साथी है तो वह है मनुष्य का अर्जित ज्ञान और उसके द्वारा किए गए पुण्य कर्म। मगर इसके लिए मनुष्य को अपनी बुद्धि व विवेक के द्वारा ही उचित अनुचित का फैसला करना होता है। कोई भी मानव अपनी बुद्धि व विवेक अनुसार ही जीवन में अच्छे-बुरे व सार्थक-निरर्थक कार्यो में अंतर को समझता है। सत्संग वह मार्ग है जिस पर चलकर मानव अपना जीवन सफल बना सकता है। जिस प्रकार का शास्त्रों के श्रवण से ही सुशोभित होता है न कि कानों में कुण्डल पहनने से। इसी प्रकार हाथ की शोभा सत्पात्र को दान देने से होती है न कि हाथों में कंगन पहनने से। करुणा, प्रायण, दयाशील मनुष्यों का शरीर परोपकार से ही सुशोभित होता है न कि चंदन लगाने से।

शरीर का श्रृंगार कुण्डल आदि लगाकर या चंदन आदि के लेप करना ही पर्याप्त नहीं है क्योंकि यह सब तो नष्ट हो सकता है परन्तु मनुष्य का शास्त्र ज्ञान सदा उसके साथ रहता है। मनुष्यों द्वारा किए गए दान व परोपकार उसके सदा काम आते हैं और परमार्थ मार्ग पर चलने वाला मनुष्य ही मानव जाति का सच्चा शुभ चिंतक होता है। प्रेम से सुनना समझना व प्रेम पूर्वक उसका मनन कर उसका अनुसरण करना ही मनुष्य को फल की प्राप्ति कराता है। लेकिन मनुष्य की चित्त वृत्ति सांसारिक पदार्थो में अटकी होने के कारण वह असत्य को ही सत्य मानता है। इसी कारण वह दुखों को भोगता है। शरीर को चलाने वाली शक्ति आत्मा अविनाशी सत्य है और वही कल्याणकारी है। 

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बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.